Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आतंक

 

भय विनाश आतंक का , रंग हुआ है लाल ।
कौन रंग हो प्यार का , है यह कठिन सवाल ।।1

 

जीवन है सस्ता बहुत , महंगा मन का चैन ।
दिन विनाश के दूत हैं , सहमी सहमी रेन ।।2

 

फैली शोलों की तपिश , खून हुआ अनुराग ।
होली तो हो ली मगर , धधक रही है आग ।।3

 

हिंसा खून विनाश का , किसने किया प्रबन्ध ।
घुली फागुनी पवन में , है बारूदी गन्ध ।।4

 

हर आशा पत्थर हुई , हुई कामना बाँझ ।
कुर्सी कीर्तन कर रहे , नेता लेकर झाँझ ।।5

 

थर थर काँपा गुलमोहर , झर झर झरा पलास ।
आतंकित परिवेश में , जीवन की क्या आस ।।6

 

है लोगों के सर चढ़ा , कैसा आज जूनून ।
गलियों में फैला रहे , हैं इंसानी खून ।।7

 

धरती ने धोखा दिया , रहा नहीं विश्वास ।
जहर हवाओं में घुल , लगी उखड़ने साँस ।।8

 

दीवारें दुश्मन हुईं , छत विनाश के साथ ।
गैर हुए अपने सभी , कौन बढ़ाये हाथ ।।9

 

अम्बर टूटा काँप कर, थर थर डिगा दिगन्त ।
पल भर में मानो हुआ , सुघर सृष्टि का अंत ।।10
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डॉ रंजना वर्मा

 

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