कुण्डलिया छंद
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चौकी माता की सदा , करती है कल्यान
भक्ति भाव से कीजिये, माता का गुण गान ।
माता का गुण गान , चुनरिया लाल चढ़ावें
आराधित हो मात , प्रतिष्ठा मान बढ़ावें ।
करें हृदय में भक्ति , सदा अभिमत दाता की
सुख समृद्धि प्रदान , करे चौकी माता की ।। 1
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विधना के सम बन पिता , सुत की करे संभाल
तभी पिता के नाम से , जाना जाये लाल ।
जाना जाये लाल , जगत में मिले प्रतिष्ठा
अद्भुत उनका प्रेम , अनोखी उन की निष्ठा ।
देते अनुपम ज्ञान , सिखाते पढ़ना लिखना
पिता मान के पात्र , सदा होते ज्यों विधना ।। 2
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विधना ने सुंदर रची , चटक चाँदनी रात
कुमुद पुष्प हैं झूमते , बहे सुगन्धित वात ।
बहे सुगन्धित वात , पुलिन यमुना का सूना
श्याम विरह का कष्ट , हो रहा दिन दिन दूना ।
सच कहते हैं लोग , विरह के दुख से बचना
कभी न मिलता चैन , वियोग लिखे यदि विधना ।। 3
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श्यामा के शुभ नाम में , है ऐसी तासीर
रटने से शुभ नाम यह , बनती है तकदीर ।
बनती है तकदीर , श्याम दर्शन की प्यासी
श्याम प्रिया राधिका , कृष्ण शशि पूरनमासी ।
बसी श्याम के हृदय , बनी कब उसकी वामा
विश्व मानता किन्तु , श्याम की प्यारी श्यामा ।। 4
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आकर मन - मन्दिर बसो , हे जसुदा के लाल
नयन - नीर अर्पण करूँ , मन - मोहन गोपाल ।
मन - मोहन गोपाल , हृदय - आवास सजाये
झूम उठे मन - मोर , श्वांस हर वाद्य बजाये ।
धन से अब क्या काम , करूँ क्या वित्त कमा कर
मन - मोहन नन्दलाल , बसो मन - मन्दिर आकर ।। 5
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कृष्णा कृष्णा कह रहे , भक्त जनों के बोल
गिरधारी के नेह में , द्वार हृदय के खोल ।
द्वार हृदय के खोल , नाम मोहन बनवारी
मनमोहन की प्रीत , विश्व तज बने भिखारी ।
उलझ न माया मोह , त्याग दे अब तो तृष्णा
आठो पहर पुकार , उठे मन कृष्णा कृष्णा ।। 6
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बीच सभा में द्रौपदी , होने लगी अधीर
दुष्ट दुशासन खींचता , अपहर्ता बन चीर ।
अपहर्ता बन चीर , दुष्ट को लाज न आयी
लगे न जब तक चोट , न जाने पीर परायी ।
है अधर्म का राज , सुयोधन की छाया में
नारी का अपमान , हो रहा बीच सभा में ।। 7
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शिक्षालय होते सदा , शिक्षा के आगार
सदाचरण सद्बुद्धि का, जहाँ रहे व्यवहार ।
जहाँ रहे व्यवहार , आज पलते अपराधी
दहशतगर्दी करें , कुटिलता है यों साधी ।
भूले सब आदर्श , भ्रष्ट हैं जो पापालय
देशद्रोह के केंद्र , बन रहे हैं शिक्षालय ।। 8
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कहते सन्त सुजान जन, दुनियां की यह रीत
स्वार्थ भरे सम्बन्ध सब, भय बिन होय न प्रीत ।
भय बिन होय न प्रीत , रीति यह सारे जग की
दण्ड बिना कब मिटें , विघ्न बाधाएं मग की ।
भीति बिना स्वच्छंद , आचरण निन्दित रहते
भय से होती प्रीति , सन्त जन सारे कहते ।।9
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सुख दुख रहते इस तरह , जैसे दिन औ रात
रात विदा होती तभी , आता सुखद प्रभात ।
आता सुखद प्रभात , सुखी जन होते सारे
सारे बिगड़े काज , भोर ज्यों स्वयं संवारे ।
धीरज से कर सहन , बीत जायेगा सब दुख
ले दुगना आनन्द , भोर - सा आयेगा सुख ।।10
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भारत माँ के पुत्र को, आओ करें सलाम ।
ऊँचा मस्तक कर गया,भारत रत्न कलाम ।
भारत रत्न कलाम, बन गया भारत भूषण
निज कर्मों से किये, दूर कितने ही दूषण ।
किया शस्त्र निर्माण, करे जो आरी को गारत ।
युगों युगों तक याद , रखेगा तुमको भारत ।।11
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करती बेटी कोख से , रो रो करुण पुकार
जग में आने दो मुझे , दो न कोख में मार ।
दो न कोख में मार , करूंगी नाम तुम्हारा
चमकूँगी मैं नील गगन , में बन कर तारा ।
पालूँ दो परिवार , सुनो सब मेरी विनती
सब से बारम्बार , विनय कन्या है करती ।। 12
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इतना मत अपमान कर , हैं बूढ़े माँ बाप
सेवा मांगे देह पर , जीवन है अभिशाप ।
जीवन है अभिशाप , न पूछे सन्तति कोई
जिनके पालन हेतु , चैन सुख सम्पति खोई ।
सन्तति के हित त्याग , किया हो चाहे जितना
भूले सब एहसान , करें अपमानित इतना ।। 13
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कन्या के संग मांगते , सब ही नित्य दहेज
निष्ठुर होकर बोलते , रख घर में मत भेज ।
रख घर में मत भेज , नहीं है यदि धन देना
सोने जैसा लाल , मुफ़्त में चाहें लेना ।
लग जाता बाज़ार , शहर या बस्ती वन्या
लेकर सभी दहेज , विदा करवाते कन्या ।। 14
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अँधा हो कर स्वार्थ में , जीवन रहा संवार
भूल गया कैसे मनुज , धरती के उपकार ।
धरती के उपकार , प्रदूषण है फैलाता
घर को रखता स्वच्छ , नगर दूषित कर जाता ।
नीर वायु वन दोहन , ही है उस का धन्धा
करे प्रदूषित विश्व , स्वार्थ में होकर अंधा ।। 15
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स्वारथ में सब यों पगे , सब स्वारथ के बाद
दुख का चाबुक जब पड़े , तब प्रभु आते याद ।
तब प्रभु आते याद , कष्ट जब भीषण होता
करते पश्चाताप , हृदय है सब का रोता ।
पोसे केवल पेट , भूल पथ परमारथ के
सुख में करे न याद , सभी चेरे स्वारथ के ।।16
------------------------------------ डॉ. रंजना वर्मा
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