Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दर्द सह कर जो मुस्कुराते हैं

 

 

गीतिका
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आधार छंद - लौकिक अनाम
मापनी - 2122 1212 22
समान्त - आते पदान्त - हैं

 

 

दर्द सह कर जो मुस्कुराते हैं ।
घाव उन के न पूर पाते हैं ।। 1

 

कर भरोसा न बात का उन की
जो मुसीबत में छोड़ जाते हैं ।। 2

 

रौशनी के लिये अंधेरों में
घर किसी का नहीं जलाते हैं ।। 3

 

चाहे मरु भूमि में खिलें जाकर
फूल खुशबू सदा लुटाते हैं ।। 4

 

कब डराता है अँधेरा उन को
तारे' रातों में जगमगाते हैं ।। 5

 

डूब जाते हैं बीच धारा में
जो न चप्पू कभी चलाते हैं ।। 6

 

जिन के' सर पर खिंची हों' तलवारें
मौत से आँख कब चुराते हैं ।। 7

 


_____________ डॉ. रंजना वर्मा

 

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