गीतिका
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आधार छंद - लौकिक अनाम
मापनी - 2122 1212 22
समान्त - आते पदान्त - हैं
दर्द सह कर जो मुस्कुराते हैं ।
घाव उन के न पूर पाते हैं ।। 1
कर भरोसा न बात का उन की
जो मुसीबत में छोड़ जाते हैं ।। 2
रौशनी के लिये अंधेरों में
घर किसी का नहीं जलाते हैं ।। 3
चाहे मरु भूमि में खिलें जाकर
फूल खुशबू सदा लुटाते हैं ।। 4
कब डराता है अँधेरा उन को
तारे' रातों में जगमगाते हैं ।। 5
डूब जाते हैं बीच धारा में
जो न चप्पू कभी चलाते हैं ।। 6
जिन के' सर पर खिंची हों' तलवारें
मौत से आँख कब चुराते हैं ।। 7
_____________ डॉ. रंजना वर्मा
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