हमसफ़र ने साथ छोड़ा किस तरह ।
दिल तड़प रोया निगोड़ा किस तरह।।
हम उन्हें गुंचे गुलों के दे रहे
हाथ पर उसने मरोड़ा किस तरह।।
किस तरह थी ज़िन्दगी शरमा रही
मौत ने दामन निचोड़ा किस तरह।।
क़समें खाता था वफ़ा की वो मगर
दिल हमारा आज तोड़ा किस तरह।।
ख़्वाब आँखों ने सजाये रात भर
सुख बना लेकिन भगोड़ा किस तरह।।
ली हमेशा हम से जीने की सलाह
ग़ैर से रिश्ता है जोड़ा किस तरह।।
बह रहीं लहरें रवानी में मगर
रुख़ नदी का तुमने मोड़ा किस तरह।।
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डॉ रंजना वर्मा
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