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ख़ल्क़ में शैतान ज़िंदा हो गया।
ज़िन्दगी का हक़ चुनिंदा हो गया।।
फंस गया सैयाद के जो जाल में
आदमी बेबस परिन्दा हो गया।।
दोस्ती के मायने कुछ भी नहीँ
दुश्मनी यारों का धंधा हो गया।।
होलियाँ हैं खून में डूबी हुई
आदमी ऐसा दरिन्दा हो गया।।
बेकसी फाकाकशी और मुफलिसी
जब मिली अल्लाह का बन्दा हो गया।।
गन्दगी ऐसी भरी माहौल में
हर किसी का ख़ून गन्दा हो गया।।
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डॉ रंजना वर्मा
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