ख़ामोशी में अपनी सूरत बेगानी सी लगती है।
ऐसे में हर आहट जैसे अनजानी सी लगती है।।
गुमसुम हवा चांदनी रातें लगतीं खोई खोई सी
अंधियारी भी देखो कैसी दीवानी सी लगती है।।
बेगाने नगमे भँवरों के और बहारों की महफ़िल
झरती हर पत्ती गुलाब की लासानी सी लगती है।
गुलशन फूल तितलियाँ खुशबू ख्वाबों के मानिन्द मगर
दिल को चुभन ख़ार की जनि पहचानी सी लगती है।।
लम्हे खुशियों के थोड़े से जैसे हो जाड़े की धूप
फिर भी ग़म की सिसकी दिल की नादानी सी लगती है।।
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डॉ रंजना वर्मा
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