Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खोये खोये हैं नज़ारे किसी दुश्मन की तरह

 

खोये खोये हैं नज़ारे किसी दुश्मन की तरह।
सज के आई हैं बहारें किसी दुश्मन की तरह।।

 

रात खामोश है तनहा से नज़ारे गुमसुम
आसमा पर हैं सितारे किसी दुश्मन की तरह।।

 

खो गये रंग सभी रात की सियाही में
फिर भी चुभते हैं नज़ारे किसी दुश्मन की तरह।

 

डूब जाये न कहीं ग़म के समन्दर में ये दिल
दूर हैं हमसे किनारे किसी दुश्मन की तरह।।

 

आज दरिया हयात की हुई गमनाक बहुत
खो गये खुशियों के धारे किसी दुश्मन की तरह।

 

 

डॉ रंजना वर्मा

 

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