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खुद फलक से जमीं पे आ मौला
हम को खुद से ही दे मिला मौला ।
डोलते मौत के फरिश्ते हैं
आबे जमजम जरा पिला मौला ।।
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क्यों तरसते रहें चाँदनी के लिये
हैं सितारे खिले यामिनी के लिये ।
रोक सकती नहीं राह तारीकियाँ
हैं न जुगनू ये कम रौशनी के लिये ।।
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बाण वचन के लगे कलेजे बिद्ध हो गये
कितने गृह त्यागी वन जाकर सिद्ध हो गये ।
मार रहे जो अबल और असहाय जनों को
आतंकी बन कर हत्यारे गिद्ध हो गये ।।
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आज आँखों को कोई सपना सुहाना तो मिले
जिंदगी को प्यार का मधुरिम तराना तो मिले ।
है न जाने क्या जगह मिलता जहाँ दिल को सुकून
हों जहाँ खुशियाँ बरसती वो ठिकाना तो मिले ।।
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पाला पोसा सन्तानों को , जीवन देती मात समान
पावन हरियालीमय धरती , करती प्राणों का नित दान ।
थोड़े से धन के लालच में , हो मत बंजर माँ की कोख
लाख गुना कर के लौटाती , कौन धरा सा अन्य महान ।।
-------------------------------------------- डॉ. रंजना वर्मा
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