ख़ुदा फिर कभी दिन न ऐसा दिखाये ।
तिरी आँख में अश्क़ जो झिलमिलाये ।। 1
जमाने की बातों की परवाह क्यों हो
मगर कोई अपना न दिल को दुखाये ।। 2
बहुत दिन गुजारे हैं गुरबत में हमने
है जाना तभी कौन अपने पराये ।। 3
ख़ुशी अब नहीं होती मेहमान दिल की
लबों को बहुत दिन हुए मुस्कराये ।। 4
अंधेरी पड़ी ज़िन्दगी की इमारत
बुझी है शमा कोई आकर जलाये ।। 5
दिया डाल डेरा है तनहाइयों ने
अकेले में क्या अब कोई गुनगुनाये ।। 6
चलो वक्त कुछ साथ अपने गुज़ारें
ज़माना हुआ खुद से नज़रें मिलाये ।। 7
------------------------- डॉ. रंजना वर्मा
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