मापनी - 122 122 122 122
काफ़िया - ए रदीफ़ - जा रही है
ख़ुशी की वो डोली चढे जा रही है ।
गमों की तिजोरी दिये जा रही है ।।
निगाहें उठाकर निहारे है घर को
दुआएँ हजारों दिये जा रही है ।।
रहीं छूट अब सारी बचपन की सखियाँ
वही चन्द यादेँ लिये जा रही है ।।
हिना से रचे हाथ की मुट्ठियों में
ले तकदीर अपनी जिये जा रही है ।।
रुलाई कहीं फूट जाये न मुख से
सभी अपने आँसू पिये जा रही है ।।
न जाने हैं कैसी सजन की वो गलियाँ
मधुर कल्पनायें किये जा रही है ।।
न जाने लिखी किस कलम से है किस्मत
लबों को ये अपने सिए जा रही है ।।
--------------------------- डॉ. रंजना वर्मा
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