मौसम की अटखेलियाँ , बिखरे कितने रंग ।
दुनियाँ छोटी पड़ गयी , ऐसी उठी उमंग ।। 11
खेत खेत हरिया गये , झुक झुक जाती डाल ।
पत्ता पत्ता पूछता , फिरता कई सवाल ।। 12
एक प्रश्न तिरता रहा , दिशा दिशा सब ओर ।
आशाओं के आम्र - वन , कब आयेंगे बौर ।। 13
वातायन से झाँकती , नई सुबह की धूप ।
बदल सकेगा क्या कभी , इस धरती का रूप ।। 14
नई सुबह की कल्पना , है कितनी अभिराम ।
लेखा जोखा कर रहे , बैठ सुबह अरु शाम ।। 15
आधी सदी गुलाम थे , आधी सदी स्वतन्त्र ।
सीख नहीं पाये मगर , अब तक शासन मन्त्र ।। 16
नयनों में सपने नए , श्वांसों में मधु - गन्ध ।
नई सुबह से हो गया , नया नेह - अनुबन्ध ।। 17
समय क्षमा करता नहीं , लेगा स्वयम् वसूल ।
दोहराते ही हम रहे , यदि फिर अपनी भूल ।। 18
अब तक बीते दिन हुए , हैं पलकों में बन्द ।
साँसों को महका रही , सपनों की मधु गन्ध ।। 19
मिटे न श्रेष्ठ परम्परा , बिखर न जाये रीत ।
परिपाटी मथ कर मिले , शिव सुंदर नवनीत ।। 20
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डॉ रंजना वर्मा
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