रख़्त बांधो कि सफ़र कट जाये ।
ध्यान रखना न ध्यान बंट जाये।।
राख में आग भी होगी ज़रुर
शम्मा बालो अँधेरा छँट जाये।।
ख़्वाब इतने न देखने लगना
ज़िन्दगी ख्वाब में सिमट जाये।।
आँगनों में उठा के दीवारें
चाहते हो कि खाई पट जाये।।
क़समें खा कर यकीं दिलाना क्यूँ
जुबां कैसी कि जो पलट जाये ।।
डॉ रंजना वर्मा
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