ये मुलाक़ातें बड़ी अच्छी लगीं।
आपकी बातेँ बड़ी अच्छी लगीं।।
दर्द की तारीकियों में गुम रहे
फिर भी बारातें बड़ी अच्छी लगीं।।
धूप में तप कर हुए बेचैन तो
चाँदनी रातें बड़ी अच्छी लगीं।।
रेगज़ारों में फंसी थी ज़िन्दगी
भीगती रातें बड़ी अच्छी लगीं।।
था तशद्दुद का नशा जिनको उन्हें
ख़ूनी बरसातें बड़ी अच्छी लगीं।।
काफ़िले हमने सजाये और तुम्हे
कुफ़्र की बातें बड़ी अच्छी लगीं।।
***
डॉ रंजना वर्मा
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY