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चिलमन को जलाता सूचना का अधिकार

 

डॉ. शशि तिवारी

चिलमन न केवल कुरूपता को ढंकता है बल्कि रहस्यों को भी छिपाता है, जिसके परिणामस्वरूप उत्सुकता की प्यास भी और भी बढ़ती है। चिलमन अर्थात् पर्दा पारदर्शी या अपारदर्शी भी हो सकता है। पर्दा कभी भी हकीकत से रूबरू नहीं होने देता और राज, राज ही रहता है, कभी-कभी तो ये राज व्यक्ति के साथ ही दफन हो जाता है। चोरी के लिये कभी अंधेरा पर्दे का काम करता है तो कभी नकाब। काम भी हो जाए और असलियत भी छिपी रहे। ये मानव स्वभाव ही है जब भी वह कोई अनैतिक कार्य करेगा तो वह आड्् या पर्दें का इंतजार और इंतजाम करेगा, फिर बात चाहे शासकीय हो, अशासकीय हो या व्यक्तिगत् हो। पर्दा कई बार भ्रम भी पैदा करता है या यू कहे भ्रम ही पैदा करता है। चूंकि देखने वाले को असलियत दिखती ही नहीं है। बस, यही से अटकलों का दोैर शुरू होता है। इस खेल में कई बार तो बेवजहां ही लठ्ठम-लठ्ठा होती रहती है, जिससे समय और धन दोनों की ही क्षति होती है। हकीकत से रूबरू कराने का बेशकीमती, नायाब तोहफा यू.पी.ए. की सरकार ने अपनी रिया को ‘‘सूचना का अधिकार’’ के रूप में दिया है। जनता के हाथों में आया ये ब्रहृामास्त्र सत्य-असत्य के बीच के चिलमन को जलाने का अचूक हथियार है। केन्द्र की यू.पी.ए. सरकार को ये जरा भी भान नहीं रहा होगा कि कल ये ही सरकार के काले-पीले कारनामों को उजागर करने में अमोक भूमिका निभायेगा। यू.पी.ए. द्वारा उत्पन्न ‘‘सूचना का अधिकार’’ का वरदान आज उसी के लिए काल और भस्मासुर बन जायेगा। यू.पी.ए. सरकार भी ‘‘सूचना का अधिकार’’ को अपने कार्यकाल की इतिहास में सबसे बड़ी उपलब्धि बता प्रचार कर रहा है। लेकिन, अब जब बड़े-बड़े घपले-घोटाले माननीयों द्वारा किये गए कुकर्म जब एक बाद एक जनता के सामने आना शुरू हुए तो अब माननीयों को यह एहसास होने लगा है कि ‘‘सूचना का अधिकार’’ यू.पी.ए. की सबसे बड़ी चूक हुई है। अब वापस इसे ले नहीं सकते, मोथरा कर नहीं सकते क्योंकि डर हे जनता के सामने पूरे नंगे होने का, डर है साधू के भेष में शैतान के उजागर होने का, डर है असली चेहरे के उजागर होने का, डर है चोर कहलाये जाने का।
ये डर केन्द्र के मंत्रियों को कुछ ज्यादा ही सता रहा है फिर बात चाहे पूर्व मंत्री ए. राजा, सुदेश कलमाड़ी, उद्योगपतियों, नौकरशाहों की हुई गिरफ्तारी से भयभीत मंत्री पी.चिरम्बरम् हो या प्रणव मुखर्जी हो, या प्रधानमंत्री हो या उनका कुनबा हो या विपक्ष के पूर्व मंत्री हो। सभी अपने-अपने खेमें में डेमेज कंट्रोल में जुट गए है, पड़ौसी के जलते घर की तपन सभी राजनीतिक माननीय महसूस कर रहे हेैंं, कहते भी है चोरी-डकैती डालना या इसका प्रयास करना या इसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इसमें शामिल होना कानून की नजर में सभी दोषी ही होते है, तो फिर 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में नीचे से ऊपर तक इससे जुड़े मंत्री, अधिकारी कैसे अपने आपको पाक-साफ बता सकते है? यदि राजा का वकील तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम को गवाह बनाने और पूरी केबिनेट पर मुकद्मा चलाने की मांग कोर्ट से कर रहे है तो इसमें गलत ही क्या है? इसी बीच प्रधानमंत्री कार्यालय को प्रणव मुखर्जी द्वारा भेजे गए उस पत्र ने रही-सही कसर पूरी कर दी जिसमें साफ-स्पष्टतौर पर कहा गया है कि चिदम्बरम् सब जानते थे और वो चाहते तो 2 जी घोटाले को रोक सकते थे। दूसरी और ‘‘सूचना का अधिकार’’ के तहत् सुब्रमण्यम स्वामी जनता पार्टी के अध्यक्ष द्वारा वित्त मंत्रालय से निकाले इसी पत्र को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर चिदम्बरम् को सह-अभियुक्त बनाने की मांग कर रहे है। कहते है स्वेटर का अगर एक सिरा पकड़ में आ जाए तो पूरा स्वेटर ही उधड़ जाता है। आज केन्द्रीय मंत्री मण्डल के साथ भी कुछ ऐसा ही घटित होता नजर आ रहा हैं। इस पूरे मामले में सभी सुप्रीम कोर्ट की और आशा भरी नजरों से इंसाफ एवं दूध का दूध पानी का पानी होना देखना चाह रहे है। ‘‘सूचना का अधिकार’’ से एक और जहां बड़ी-बड़ी मछलियां जो इसके कांटे में फंसी वही कई लोगों ने जेल जा अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा भी खोई।
जनता के सामने ‘‘सूचना का अधिकार’’ से आए उत्साहजनक परिणामों से उनमें भी एक नई शक्ति तरंग का संचरण हुआ है। इसके ठीक उलट माननीयों, मंत्रियों, अधिकारियों में ‘‘सूचना का अधिकार’’ अब भ्रष्टों के लिये न केवल जी का जंजाल बनता नजर आ रहा है बल्कि जेल की राह और मौत का फंदा भी नजर आ रहा है।
अब तो केन्द्रीय मंत्री भी दबी जुबां में ‘‘सूचना का अधिकार’’ को ले कुछ-कुछ कहने लगे है। मसलन एम.वीरप्पा मोइली कह रहे है कि ‘‘सूचना का अधिकार’’ कानून से सरकार के काम-काज में बाधा पड़ रही है? वहीं कानून मंत्री सलमान खुर्शीद भी मोइली के सुर में सुर मिलाते कहते है कि इस कानून का दुरूपयोग हो रहा है। ऐसा केवल मंत्री, सरकारी अधिकारी ही नहीं बल्कि न्यायाधीश भी महसूस करते है?
मैं ये नहीं जानती इन्होंने क्या सोचकर ये वक्तव्य दिया। क्या सरकार मंत्रियों, अधिकारियों के काले-पीेले कारनामों के उजागर होने से भयभीत है या इन्हें ऐसा करने की अघो घोषित छूट मिलना चाहिए?
‘‘सूचना का अधिकार’’ पारदर्शिता और जवाबदेहता के सिद्धान्त पर ही टिका है अर्थात् प्रत्येक वो जन जो शासकीय धन में परोक्ष या अपरोक्ष रूप से संलिप्त है, उपयोग करता है तो उसके कार्यों, कृत्यों में न केवल पारदर्शिता हो बल्कि गलती होने पर जवाबदेहता के साथ दण्ड भी हो। यदि इसका पालन मंत्री, माननीय और अधिकारी ही नहीं करेेंगे या बचने का प्रयास करेंगे तो जनता को भी नियमों का पालन करने की बात किस मुुंह से कहेंगे? सभी को दोहरे चरित्र के बीच के चिलमन को जलाना ही होगा। जनता और संविधान की रक्षा के लिए माननीयों को नैतिक साहस दिखाना ही होगा या फिर जनता के सामने दबंगी से ये उद्घोषणा करें कि ‘‘हम सब चोर हैं।’’

ऐसा पर्दा है कि चिलमन में दबे बैठे है
साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं।’’

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