Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दाग

 

(डाॅ. शशि तिवारी)

 

 

यूं तो दाग, धब्बा हमेशा ही बुरा होता है। दाग हमेशा कुरूपता को ही बढ़ाता है फिर बात चाहे, व्यक्ति, व्यवस्था, तंत्र या चांद की खूबसूरती की ही क्यों न हो? दाग हमेशा ही ऋणात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है। जब यह और भी स्याह हो जाता है तब यह कलंक बन जाता है जिसे धो पाना न केवल मुश्किल है बल्कि नामुमकिन भी हैं।
इतिहास में कलंक के सैकड़ों उदाहरण है फिर बात चाहे मंथरा की हो, चन्द्रमा को चोरी लगने का कलंक हो या एक धोबी द्वारा सीता पर चारित्रिक लांछन की हो या कृष्ण पर मणि चोरी की हो। यह आज भी ज्यों का त्यों है।
ये भारतीय संस्कृति ही है जहां नारी को पूजने की बात होती है, नारी को ही शक्ति एवं मां का दर्जा प्राप्त है देवता भी जिसका गुणगान करते नहीं थकते। आडम्बर के चलते ही इसी भारत में नारी अपने ऊपर होते अत्याचार की जीती-जागती प्रतिमा बनती ही नजर आ रही है, फिर बात चाहे कवियों की हो या लेखकों की हो। आज सभी के निशाने पर लड़की/स्त्री ही है। स्त्री के प्रति समाज में फैली तमाम कुरूतियां एक कलंक के ही सदृश्य है। फिर बात चाहे दहेज, बलात्कार, अपहरण या देहव्यापार की ही क्यों न हो? इन सभी ने स्त्री को उपभोग एवं व्यापार की वस्तु से ज्यादा कुछ नही माना। ‘‘समाज में बढ़ते अपराध की धुरी कहीं न कहीं जाने-अनजाने में नारी ही बनती जा रही है जो किसी देश या प्रदेश के लिए एक कलंक से कम नहीं है।
राष्ट्रीय अपराध की हालिया प्रकाशित रिपोर्ट में महिला बलात्कार 14 प्रतिशत, यौन उत्पीड़न 15 प्रतिशत, लड़कियों की तस्करी 5.6 प्रतिशत, दलित महिला से बलात्कार 21 प्रतिशत अपराध के यह आंकड़े देश में मध्यप्रदेश के माथे पर एक कलंक की तरह है। इससे हमारे प्रदेश की कानून व्यवस्था की स्थिति की भी पोल खुलती है। ये तो वे आंकड़े है जो दर्ज हुए, दर्ज न होने वाले आंकडे इससे दुगने या तीन गुने भी हो सकते है क्योंकि लाज, इज्जत के डर से लोग बचना चाहते हैं एक ओर प्रदेश का मुखिया ‘‘शिव राज’’ बेटी बचाओ, लाडली लक्ष्मी, गांव की बेटी, ऊषा किरण, सबला जैसी महत्वकांक्षी लोकप्रिय योजनाएं चला रहे हैं। करोड़ो रूपया खर्च करने के बाद भी बेटी-बहू को प्रदेश का गृह विभाग महफूज नहीं रख पा रहा है, फलस्वरूप बदनामी का टीका प्रदेश के माथे पर लग रहा है।
आज महिला के लिये क्या थाने, क्या अस्पताल, क्या आश्रम, क्या महिला पुर्नवास, क्या स्वयंसेवी संस्थाएं, क्या शासकीय, अशासकीय संस्था ने कुछ भी तो सुरक्षित नहीं है। अभी हाल ही में म.प्र. भोपाल के जे. पी. अस्पताल में एक वार्ड बाय द्वारा इलाज के नाम पर इज्जत तार-तार करने की घटना घटी।
वर्ष 2009, 2010, 2011 एवं 2012 में कुल गुमशुदा बालिकाओं में से क्रमशः 29, 52, 134, एवं 82 बालिकाएं नहीं मिली। बलात्कार में भी 2007, 08, 09, 10 ये क्रमशः 3010, 2937, 2998, 3135 की संख्या रही जो समाज में बढ़ रही अराजकता को दर्शाती है।
अजा एवं अजजा के मामले में भी 2007, 08, 09, 10 में क्रमशः 1501, 1071, 2009, 1384 बढ़ोत्तरी ही हुई है। ये आंकडे प्रदेश सरकार के माथे पर दाग की तरह है।
यूं तो महिला पर हिंसा के लिए देश एवं प्रदेश द्वारा समय-समय पर ढ़ेरों कानून बना अपने कत्र्तव्यों से इति समझ ली है। हकीकत में देखा जाए तो कानून बनाने के बाद इसकी खामियों एवं प्रगति के साथ जवाबदेही को ले कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है। नतीजन कानून के जंगल में बेटी-महिला आज सिर्फ भटकती ही नजर आ रही है।
जिस देश/प्रदेश में आधी आबादी ही प्रताडि़त हो रही हो, सिसक रही हो तो ऐसे में देश/प्रदेश कैसे प्रगति कर सकता हैं।

 

 

शशि फीचर            लेखिका ‘‘सूचना मंत्र’’ पत्रिका की संपादक है

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ