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एक देश,एक टेक्स परिणाम भविष्य के गर्त में

 

डाॅ. शशि तिवारी

 


एक लंबे समय से लगातार इस बात पर चिन्तन चल रहा है कि भारत में एक कानून, एक झण्डा, एक भाषा, एक कर हो।
काॅमन सिविल कोड पर बात आगे बढ़ गई है ये भी र्निविवाद रूप से सत्य है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत एक है यह प्रश्न उठता है फिर काश्मीर का अलग से झण्डा क्यों? तीसरा विविधता के देश में एक सर्वमान्य भाषा की नितान्त आवश्यकता है निःसंदेह एक देश से लगाव को बढ़ता है। पूरे देश में एक कर हो इसी को ले हाल ही में लोकसभा एवं राज्यसभ से बहुप्रतिक्षित ‘‘वस्तु एवं सेवा कर विधेयक’’ (जी.एस.टी.) 122वां संविधान संशोधन विधेयक 2014 अब पारित हो चुका है जिसे अप्रैल 2017 से लागू होना है। यहां आम आदमी के दिमाग में कुछ प्रश्न अनायास ही उठ रहे हैं मसलन इससे फायदा क्याद्व इसके लागू होने से क्या होगा, इसमें क्या कमी है ये कर कितने प्रतिशत का होगा, आदि-आदि निःसंदेह इसके लागू होने से कारोबार करना आसान होगा, राष्ट्रीय सासा बाजार के गठन का आधार बनेगा, एवं आर्थिक गतिविधियांें में तेजी आयेगी।
वर्तमान में लगभग 14 से 16 तरह के टेक्स आम आदमी को चुकाने पड़ते हैं उससे मुक्ति मिलेगी। निर्माता अपने माल को पूरे भारत में बिना कानूनी झंझटों के पहंुचा सकेगा जिससे उपभोक्ता को भी एक ही कीमत पर पूरे भारत में उत्पाद मिल सकेगा दूसरी और इन्सपेक्टर राज से भी मुक्ति मिलेगी।
क्या होगा? केवल दो टेक्स केन्द्र का जी.एस.टी. एवं राज्यों का जी.एस.टी. रहेंगे सेन्ट्रल सेल्स टेक्स एवं एन्ट्री टेक्स से मुक्ति मिलेगी, जिसके परिणाम स्वरूप कर दाताओं की संख्या में भी इजाफा होगा। एक मोटे अनुमान के अनुसार जी.डी.पी. लगभग डेढ़ से दो फीसदी तक बढ़ेगी विश्व स्तर पर अभी इस तरह की योजना लगभग 150 देशों में लागू है।
चुनौती अब जब ये विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है अब इसे 30 दिनों के भीतर कम से कम 16-17 राज्यों से इस विधेयक को अपने-अपने राज्यों की विधान सभा से पारित कराना भी एक बड़ा काम है।
कमी डीजल-पेट्रोल को इस विधेयक से मुक्त रखा गया है यहां यक्ष प्रश्न खड़ा होता है आखिर जब ये भी एक उत्पाद है तो फिर ये मुक्त क्यों? कहीं तेल कंपनियों से कोई सांठ-गांठ तो नहीं? यह जानते हुए कि ये सीधे तौर पर अन्य उत्पादों की कीमतों पर सीधा असर डालता है। दूसरा रियल स्टेट, बिजली, स्टाम्प ड्यूटी एवं पंचायत पर मनोरंजन कर से क्यों मुक्त रखे गए? ये अलग बात है कि जब भाजपा विपक्ष में थी तो हमेशा इसका विरोध करती रही लेकिन अब उसी ने इस बिल की पहल की अब यही कहा जा सकता है कि देर आए दुरूस्त आए जैसा कि विदित है भारत में राजस्व का 57 फीसदी भाग सेवा क्षेत्र से ही आता है। यहां एक और यक्ष प्रश्न उठता है कि जी.एस.टी. कितने प्रतिशत होगा? केन्द्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के अनुसार जी.एस.टी. 15 से 15.5 प्रतिशत के मध्य रखना उचित होगा जबकि कांग्रेस 18 प्रतिशत की वकालत करती रही है लेकिन, ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है, कि यह 20-22 प्रतिशत तक हो सकता है। यदि ऐसा होता है तो शुरूआती दो तीन वर्षों में महंगाई भी बढ़ेगी जो केन्द्र सरकार के माथे पर सलवटे लाने के लिए पर्याप्त है। चूंकि अभी एन.डी.ए. सरकार के ढ़ाई वर्ष गुजर चुके हैं एवं ढाई ही शेष है तो बढ़ी हुई महंगाई पुनः सत्ता में आने का सबसे बड़ा रोड़ा साबित होगी। क्योंकि यह सरकार भी महंगाई डायन खाय जात है को बजाकर एवं अच्छे दिन का वायदा कर यू.पी.ए. को अपदस्थ किया। निःसंदेह एन.डी.ए. की नीतियों के अच्छे परिणाम आने में लगभग 05 वर्ष कम से कम लगेंगे तभी अभी के सुधारों का वांछित परिणाम सामने आयेंगे। इस तरह एन.डी.ए. सरकार के लिए 2018 के चुनाव किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होंगे। वहीं भाजपा शासित राज्यों में अब एन्टी इकम्बेंसी फैक्टर भी प्रभावी तौर से क्रियाशील रहेगा। इस तरह राज्यों का क्रिया कलाप ही आगे का भविष्य तय करेंगा।

 

 

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