Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जैसी करनी वैसी भरनी

 

डॉ. शशि तिवारी

 


‘‘जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन्’ मन से विचार, विचारों से व्यक्तित्व और व्यक्तित्व् से प्रदेश/देश बनता है। कहा भी जाता है कि तुम अपने दोस्तों के नाम बताओं। मैं तुम्हारा चरित्र बताऊंगा।


दोनों ही बातें आज जनप्रतिनिधियों पर खरी उतर रही है। जन प्रतिनिधि और बलात्कारी, जन प्रतिनिधि शासकीय धन का चोर, जनप्रतिनिधि और हत्यारा जनप्रतिनिधि और गुण्डे के मुकद्में, घपले-घोटालों के मुकद्में? फिर भी है माननीय? मैं कैसी उल्टी गंगा बहाने में जुटे हुए हैं? क्यों माननीय शीर्षासन करने पर तुले हे। ऐसे में हर सच और सच कहने वाला केवल और केवत साजिश करने वाले को उल्टा ही दिखाई देगा। छग के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने एक भारी सभा में कहा था- ‘‘अगर बेटा चोरी चमारी, गलत कार्य करें तो उसकी सजा उसके बाप को मिलनी चाहिए, क्योंकि बेटे में बीज तो उसी का है।’’ सिंह के इस वक्तव्य का विरोध कुछ माननीयों ने भी किया। लेकिन आज जब हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चोटाला और उनके बेटे अजय चोटाला को रोहिणी स्थित सी.बी.आई. की विशेष अदालत ने शिक्षक भर्ती घोटाले में 10-10 साल की सुनाई तो रमन सिंह की बात अनायास की सच हो गई, कहते भी है जब करे दिन आते है तो पुराने कुकर्म भी उजागर होते हैं। कुछ अखबारों ने छापा है कि ओमप्रकाश चोटाला को उनके पिता देवीलाल ने तब घर से निकाल दिया था जब वह घडियों की स्मगलिंग करते हुए दिल्ली एयरपोर्ट पर पकडे गये थे।


में तो कुकर्मों की सजा की मांग बानगी मात्र है। हत्या, लूट, डकैती, बलात्कार, घपले, घोटालेबाज जनप्रतिनिधियों/मंत्रियों की लम्बी फेहरिश्त हैं।


यहां यक्ष प्रश्न उठता है कि ऐसे लोगोें का देश सेवा समाज सेवा में क्या काम? जरा-जरा सी बातों पर राजनीतिक दलों द्वारा भारत बंद, रेल बंद, देश बंद, प्रदेश बंद, शहर बंद, कराने वालों ने क्यों नहीं आज तक ऐसे भ्रष्टों के विरूद्ध राजनीति में प्रवेश के लिए आंदोलन क्यों नहीं किया? क्यों आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने अपनी स्वच्छ, स्वस्थ छबि के लिए संवैधानिक संस्थाओं जैसे चुनाव आयोग कडे प्रावधानों और ऐसे लोगों के चुनाव लडने के लिए दबाव डाला? क्यों कुछ के लिए सभी पर कलंक का टीका लगे? क्यों एक सड़ी मछली के कारण पूरा राजनीतिक समूह बदनाम हो? ऐसा कृत्य कहा तक उचित है? क्या चोर साबित करने की जिम्मेदारी केवल आदतन की है। राजनीतिक दलों की नहीं? क्यों नहीं राजनीतिक सोशल आदि पर जोर देते है। ऐसे कृत्य न केवल व्यक्ति, पार्टी की छबि को कलंकित करते है बल्कि विश्व में देश की छबि को भी दागित करते है। जो किसी भी सूरत में किसी भी भारतीय को माल नहीं बेचा।


अबत वक्त आ गया समाज सेवा, देश सेवा के नाम पर घुस भारत भेडियों को अदालत के पहले स्वयं राजनीतिक दल ही न केवल विरोध करें बल्कि जनता के सामने ऐसे धन्धेवाले को बेपर्दा भी करें? एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का चूहा, बिल्ली का खेल अब बंद होना चाहिए। नहीं तो वह दिन इस देश के लिए दुर्भाग्य का दिन होगा जब जनता ऐसों के विरूद्ध जनक्रांति का आगाज करें।

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ