हिन्दुत्व एवं जाति में हमें भेद करना ही होगी, नहीं तो आगे-आने वाले समय में जातियों के मध्य बड़ा ही उत्पात मचेगा दरअसल हिन्दु कोई जाति नहीं है वास्तव में सिन्धु नदी के पास की बसाहट सिन्धु के ‘स’ का उच्चारण ह होने से हिन्दु कहलाया ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो सभी हिन्दुस्तानी हिन्दू हैं।
भारत के संविधान में जातियों को संरक्षण या आरक्षण देने की बात कहीं भी नहीं कही गई है, बरहाल अनुसूचित जाति शब्द का प्रयोग जरूर हुआ है लेकिन हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि अनुसूचित नाम की कोई जाति भारत में नहीं है।
इतिहास गवाह है कि हिटलर जैसा प्रभावी नेता ने नस्लवाद का जहर फैलाकर जर्मन के जनतंत्र का ही बेड़ा गर्क कर दिया। ठीक उसी तर्ज पर हमारे अति उत्साही नेता जातिवाद का जहर फैला भारतीय लोकतंत्र को खोखला कर तहस-नहस कर रहे हैं भारत में आरक्षण के लिये जाति निर्धारण का पैमाना क्या है किसी को भी नही पता बस हम सब आरक्षण की इस अंधी दौड़ में हर कोई अपने को हर कीमत पर सम्मिलित कराना चाहता है।
आखिर हम सभी भारतीयों के सामने एक यक्ष प्रश्न बड़ा है राष्ट्र बड़ा या जाति बड़ी? आखिर हम क्या चाहते हैं घड़ी है निर्णय की, बनाने या मिटाने की, यहीं से शुरू होता है भारत तोड़ो या जोड़ो अभियान, यहीं से दिशा एवं दशा निर्धारित होगी, यदि जाति समर्थकों की जीत होती है तो जन्म के आधार पर भेदभाव करने वाला भारत दुनिया का एक मात्र राष्ट्र होगा।
जन्म से तो हम सभी केवल मनुष्य ही पैदा होते हैं मनुवादी वर्ण व्यवस्था मूलतः कर्म आधारित ही थी लेकिन कालान्तर में शने-शने इसने कव जन्मजात ले लिया पता ही नही चला यही बुराई आज वर्तमान में भी जारी है जिसका ज्वलंत उदाहरण आज जन्मजाति आधारित आरक्षण है । सारी की सारी गड़बड़ी एवं फसाद की जड़ यहीं से शुरू होती है, जिसे पूरी ताकत के साथ हवा देने का काम कुछ स्वार्थी नेता पुरजोर कोशिश
करने में लगे हैं। आज भले ही आप कलेक्टर, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या अच्छे ओहदे पर हैं लेकिन जन्मजाति से शूद्र है तो संवधिान के अनुसार ‘अनुसूूचित जाति’ को है तो आरक्षण के पूर्ण अधिकारी है, अब भला इनके बच्चों को आरक्षण की क्या आवश्यकता? बस यहीं से आरक्षण की गलत दिशा तय हो गई, जिससे पूरा देश सुलग रहा है जो जन्मजाति आधारित आरक्षण का सबसे स्याह चेहरा है ऐसा नहीं है कि तथाकथित
हमारे नेताओं को यह बुराई एवं गंभीर चूक समझ में नही आ रही आखिर बात अब समाज की नहीं वोट की जो है। मेरा दावा है आज नहीं कल हमें शांति एवं अर्थपूर्ण आरक्षण चाहिये तो मनु की कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था पर पुनः लोटना होगा जाति आदमी को आदमी से नहीं मिलने देती, आदमी-आदमी के बीच केवल गहरी खाइयां ही पैदा करती हैं। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने तो ‘जातिप्रथा’’ का समूल नाश’’ नामक गं्रथ भी
लिखा, आजादी के बाद डॉ. राम मनोहर लोहिया ने तो जात तोड़ो आन्दोलन भी चलाया भारत के किसी भी ग्रंथ में जनमना जाति का समर्थन देखने को नहीं मिलता बल्कि कहा गया है कि जन्म से सभी शूद्र हैं, संस्कार से द्विज बनते है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा चारों वर्ण मैने गुण-कर्म के आधार पर बनाए है मनुस्मृति में भी जन्मना जाति का विरोध है, लेकिन आज तथाकथित नेताओं की नासमझी के कारण मनु को गलत
रूप में व्यक्त किया गया।
डॉ. लोहिया ने कहा कि हिन्दुस्तान की दुर्गगति का सबसे बड़ा कारण जाति प्रथा है। आज जाति का केवल राजनीतिक इस्तेमाल ही हो रहा है हकीकत में आज पुरातन समय से चली आ रही जाति आधारित संस्थागत चेतना खत्म हो रही है और यह सिर्फ सामाजिक आयोजनों तक ही सीमित रह गई है, जबकि आज राजनीतिक चेतना के हाथों पूरी तरह से जाति चेतना का इस्तेमाल हो रहा है शायद यही कारण, है कि सामाजिक अधिनुक्रम के
स्तर पर जाति का कोई अर्थ नही रह जाता, आज नौकरी एवं अन्य लाभ के स्थानों में अगडी जातियों का हटना एवं निचली जातियों का वर्चस्व होना कोई जाति व्यवस्था का ध्वस्त होना नहीं हेै यह एक तरह का परिवर्तन है या यूं कहे एक प्रकार का हस्तांतरण है इससे ज्यादा कुछ भी नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा के जाट बहुल इलाके में वर्तमान आरक्षण व्यवस्था में जाटों को भी आरक्षण का लाभ मिले
इसके लिये खेती में गिरावट एवं नौजवानों की पीढ़ी में बढ़ती बेरोजगारी को आरक्षण के लिये मुख्य आधार बताते हैं अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष यशपाल मलिक का कहना है कि आठ राज्यों में जाटों को आरक्षण दिया जा चुका है जबकि हरियाणा पंजाब और जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकारों ने नहीं दिया। अभी केन्द्र ने भी राजस्थान को छोड़कर जाटों को आरक्षण की मान्यता नहीं
दी मलिक का कहना है कि जाट कहीं का भी हो केन्द्रीय स्तर पर आरक्षण दिया जावे वही भारतीय किसान यूनियन के नेता महेन्द्र सिंह टिकैत कहते है जब आरक्षण की बंदर बाट हो ही रही है तो जाटों का इससे वंचित क्यों?
जातियों के आधार पर समाज को समाज से लड़ाने एवं बांटने के काम में हमारे नेताओं ने सदैव अग्रणी भूमिका निभाई है, फिर चाहे बात बी.पी.सिंह का 1990 में सरकारी नौकरियों में मंडल आयोग की सिफारिश पर पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण की बात हो या मायावती का दलित प्रेम हो दोनों ने ही समाज के छोटे-छोटे दल बनायें ताकि भूल कर भी एक जुट होकर खड़े न हो सके आज राष्ट्रीय परिदृश्य पर खड़ी बहुजन समाज पार्टी को
खड़ा करने में लाखों कार्यकर्ताओं का खून पसीना बहा है लेकिन आज वह भी आम पार्टी की तरह व्यवहार कर रही है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने दलितों को जो सम्मान दिलाया वह अद्वितीय है लेकिन उन्होंने भी आरक्षण केवल 10 वर्ष तक ही चलाने की बात कहीं। आखिर ऐसा कहने एवं करने के पीछे कुछ तो सोचा ही होगा, बाबा साहब अम्बेडकर के दुनिया छोड़ने पर 01/जुलाई/1957 को प्रख्यात समाजवादी नेता डॉ. लोहिया ने लिखा
कि उनकी महानता के कारण मुझे यह भरोसा होता है कि एक न एक दिन भारत और हिन्दू समाज जाति से मुक्त हो जायेगा। निःसंदेह बाबा साहब उच्च कोटि के विद्धान होने के साथ बहादुर एवं सच को सच कहने का साहस रखने वाले प्रमाणित नेता थे आज राजनीति के पटल पर एक भी ऐसा नेता नहीं है जिसके बारे में कोई ऐसा कह सके अथवा लिख सके अब वक्त आ गया है जातिविहीन समाज की रचना का जिसमें आरक्षण का आधार केवल और
केवल कर्म आधारित हो। ऐसी व्यवस्था से केवल वास्तविक हकदार को ही आरक्षण का लाभ मिलेगा साथ ही साथ जातिविहीन समाज का भी निर्माण होगा और दिन प्रतिदिन होने वाले जातिय आधार पर आरक्षण मांगने वालों के लिये नए आन्दोलन से भी मुक्ति मिल जायेगी।
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