१४ सितम्बर २०२२,हिंदी-दिवस पर विशेष.
हिंदी का ज्ञान
डॉ० शिबन कृष्ण रैणा
हिंदीतर-भाषाभाषी नव-लेखकों को,जो पहले से ही अपनी-अपनी भाषाओँ में लिख रहे होते हैं, हिंदी में लिखने ओर प्रेरित करने के उद्देश्य से भारत सरकार के केन्द्रीय हिंदी निदेशालय ने अपने ‘विस्तार विभाग’ के अंतर्गत कुछेक योजनायें पिछले अनेक वर्षों से चला रखी हैंI इन में से एक योजना के अनुसार ऐसे नवलेखकों का शिविर किसी अहिन्दी-भाषी प्रदेश में लगता है जिसमें हिंदीतर प्रदेशों से लगभग पच्चीस नव-लेखक/लेखिकाओं का चयन किया जाता है और उन्हें हिंदी के विद्वान लेखकों/मार्गदर्शकों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता हैI सात-आठ दिनों तक चलने वाले ऐसे शिविरों में नव-लेखकों की उनकी हिंदी-लेखन से जुडी उन तमाम समस्याओं का निराकरण करने का प्रयास किया जाता है जिनसे प्रायः एक अहिन्दी-भाषी नवलेखक का वास्ता पड़ता हैI मुझे ऐसे कई शिविरों में मार्गदर्शक के रूप में सम्मिलित होने का सुअवसर मिला हैIमैं ने पाया है कि ज़यादातर इन नवलेखकों के भाव अथवा विचार या यों कहिये वर्ण्य-विषय सुंदर तो होते हैं, मगर ‘अभिव्यक्ति-पक्ष’ कमजोर होता हैI हिंदी से जुड़ी व्याकरण,उच्चारण,वर्तनी आदि की अशुद्धियाँ इन नव-लेखकों में यथेष्ट मात्रा में देखने को मिलती हैं, जो स्वाभाविक हैI हिंदी इनकी स्वभाषा नहीं है,अतः सोचते ये अपनी भाषा में हैं और सृजन हिंदी में करते हैंI इस प्रक्रिया में इनकी अपनी भाषा का व्याकरण और व्याकरणिक विधान यथा लिंग,वचन,क्रिया आदि इनके जेहन पर हावी रहते हैं और फिर लिखते भी उसी के अनुसार हैंIकहने का तात्पर्य यह है कि किसी भी भाषा में लिखने लायक पारंगतता उस भाषा के माहौल में रहने,रचने-पचने या फिर उस भाषाक्षेत्र में लसने-बसने से ही होती हैIमेरे ऐसे कई राजस्थानी मित्र हैं जो असरदार गुजराती,बंगाली या फिर मराठी बोलते-लिखते हैं क्योंकि वे वर्षों से इन भाषा-क्षेत्रों में रहे हैं और इन्हीं क्षेत्रों में पले-बड़े हुए हैंIकुछ अपवादों को छोड़ दें तो ज्ञात होगा कि हिंदी के ख्यातनामा लेखक कभी-न-कभी,थोड़े-बहुत समय के लिए ही सही, हिंदी अंचलों में रहे हैं या फिर इन अंचलों से उनका अच्छा-ख़ासा जुड़ाव रहा हैI
यों,प्रशिक्षण द्वारा शिविरार्थियों को लाभ अवश्य होता है क्योंकि उन्हें साहित्यशास्त्र सम्बन्धी ध्यातव्य बातों के अलावा हिंदी व्याकरण, हिंदी साहित्य की परम्परा, विकास आदि की जानकारी से अवगत कराने के साथ-साथ उनकी स्वरचित रचनाओं पर चर्चा और उनका परिशोधन भी किया जाता हैIएक शिविर की बात आज तक याद हैI हमारे एक मार्गदर्शक बन्धु प्रशिक्षणर्थियों को हिंदी में लिंग-निर्धारण के नियमों को समझा रहे थेI बातचीत/चर्चा के दौरान जब उन्होंने यह समझाया कि प्रायः हिंदी के ‘ईकारांत’ शब्द स्त्रीलिंगी होते हैं तो एक शिविरार्थी, जो संभवतः दक्षिण भारत में किसी स्कूल में हिंदी के अध्यापक थे, ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया:”सर,इस नियम में एक अपवाद भी हैI पूरे हिंदी शब्दकोश में पांच शब्द: मोती,घी,पानी,हाथी और दही ऐसे शब्द हैं जो ईकारांत होते हुए भी पुलिंगी हैंI.” अध्यापकजी की बात में दम थाI सभी शिविरार्थियों के साथ-साथ हम मार्गदर्शकों के ज्ञान में भी बढ़ोतरी हुयीI हिंदीतर भाषी होते हुए भी किसी-किसी शिविर में तो प्रशिक्षणर्थी पूरी तैयारी के साथ आते हैंI
DR.S.K.RAINA (डॉ० शिबन कृष्ण रैणा) MA(HINDI&ENGLISH)PhDFormer Fellow,IIAS,Rashtrapati Nivas,Shimla
Ex-Member,Hindi Salahkar Samiti,Ministry of Law & Justice (Govt. of India) SENIOR FELLOW,MINISTRY OF CULTURE (GOVT.OF INDIA) 2/537 Aravali Vihar(Alwar) Rajasthan 301001 Contact Nos; +919414216124, 01442360124 and +918209074186 Email: skraina123@gmail.com,
shibenraina.blogspot.com
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