| Thu, Aug 18, 10:44 AM (2 days ago) |
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कश्मीर में ‘टारगेट किलिंग’ का दौर थम नहीं रहा। आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान घाटी में जगह-जगह तिरंगा फहराए जाने से भड़के जिहादी कश्मीरी पंडितों को निशाना बना रहे हैं। हाल ही में शोपियां में सेब के बाग में काम कर रहे दो भाइयों पर जिहादियों ने फायरिंग कर सुनील कुमार भट्ट को मौत के घाट उतार दिया। वहीं उनके भाई पीतांबर भट्ट मौत से संघर्ष कर रहे हैं। चार बेटियों के पिता सुनील कुमार भट्ट 45 साल के थे और अपने परिवार के साथ अपने गाँव में रह रहे थे। आतंकियों ने उन्हें सेब के बाग में काम करते वक्त निशाना बनाया। बताया जा रहा है कि दोनों से आतंकियों ने पहले नाम पूछे और फिर ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं जिसमें सुनील की जान चली गई और उनके भाई अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। हमला करने वाले आतंकवादी की पहचान हो चुकी है। वह अल-बद्र नाम के आतंकी संगठन का सदस्य है। हमले के बाद अल- बद्र ने बयान जारी कर कहा है: ‘तिरंगा रैली के लिए दोनों भाइयों ने लोगों को प्रोत्साहित किया था, जिस वजह से उन पर हमला किया गया।‘
खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान कश्मीर में टारगेट किलिंग के लिए ऑपरेशन ‘रेड वेव’ चला रहा है। 1980-90 के दशक में भी ऑपरेशन ‘टोपाक’ चलाया गया था। माना जा रहा है कि घाटी में ऑपरेशन ‘रेड-वेव’ के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने 200 लोगों की लिस्ट बनाई है, जिसे अमल में लाने के लिए ‘हाइब्रिड आतंकी संगठन’ तैयार किया जा रहा है।
कश्मीरी पंडितों की जिंदगी में आक्रोश,दहशत, दर्द, गुस्सा और नाराजगी बढ़ती जा रही है। जो कश्मीरी पंडित आतंकवाद के दौर में कभी घाटी छोड़कर कहीं नहीं गए थे,वे अब लगातार आतंकियों के निशाने पर हैं। प्रशासन के खिलाफ लोगों का गुस्सा सुनील भट्ट की अंतिम यात्रा में दिखा। बड़ी संख्या में लोगों ने आतंकवाद के खिलाफ कड़े एक्शन की मांग की। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटने से यह उम्मीद जागी थी कि अब कश्मीर की सरहदें आतंकियों से मुक्त हो जाएंगी लेकिन ऐसा होता हुआ फिलहाल दिख नहीं रहा है। साल 2022 के करीब साढ़े 8 महीनों में 24 से ज्यादा टारगेट किलिंग की घटनाएं हो चुकी हैं। पिछले साल से तुलना करे तो ये आंकड़ा बढ़ा है क्योंकि पिछले साल यानि 2021 में 15 ऐसी वारदातें सामने आईं थी। इस साल मई से अगस्त के बीच ही अब तक घाटी में टारगेट किलिंग के 10 से ज्यादा मामले सामने आए हैं।
ऐसा नहीं है कि पंडितों की टारगेट किलिंग की भर्त्सना स्थानीय मुस्लिम-समाज न कर रहा हो। ये लोग भी आए दिन होने वाली इन हत्याओं से परेशान/बेज़ार हैं। 'कत्ल-ए-नाहक... नामंजूर' और 'खूनखराबी... नामंजूर' जैसे नारे लगाते हुए मुस्लिम समाज ने भी ऐसी आतंकी वारदातों का विरोध किया है। सुनील कुमार भट्ट की अंतिम यात्रा में एकता की मिसाल भी देखने को मिली। यहां मुस्लिम समुदाय के लोगों ने 'हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में हैं भाई-भाई' के नारे लगाए। जहां घाटी में कत्लेआम के खिलाफ आवाज बुलंद हो रही है,वही कुछ राजनीतिक पार्टियां इस पर सियासत करने से बाज़ नहीं आ रही हैं। ये पार्टियां जम्मू-कश्मीर में हालात को 'बनावटी सामान्य स्थिति' बताते हुए सरकार को निशाने पर ले रही हैं। सहयोग कम और आलोचना ज्यादा कर रही हैं। कहना न होगा कि इनके इस नकारात्मक रवैये से जिहादियों के हौसले बढ़ते है।
इधर, शोपियां में कश्मीरी पंडित सुनील भट्ट की हत्या के बाद श्रीनगर स्थित कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष ने सभी पंडितों को घाटी छोड़ने के लिए आवाहन किया है। अपने बयान में उन्होंने कहा है कि कश्मीर घाटी में कोई भी कश्मीरी पंडित सुरक्षित नहीं है। कश्मीरी पंडितों के लिए केवल एक ही विकल्प बचा है कि वह कश्मीर छोड़ दें या धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा मारे जाएं।
समय आ गया है जब ‘टारगेट किलिंग’ में मारे गए पीड़ित परिवारों को इंसाफ दिलाने और आतंकियों द्वारा अंजाम दिए गए कायराना हमलों पर लगाम लगाने के लिए सरकार फौरी तौर पर कोई सख्त कारवाई करे अन्यथा घाटी में एक बार फिर 1990 का दौर लौटने में देर नहीं लगेगी।
शिबन कृष्ण रैणा
अलवर
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