पुस्तक-प्रेम
बहुत पहले की बात है. सम्भवतः १९८० के आसपास की। मेरी पुस्तक ‘कश्मीर की श्रेष्ठ कहानियां’ राजपाल एंड संस, दिल्ली से छप रही थी।मेरा पोस्टिंग तब नाथद्वारा(उदयपुर) में था।समय निकाल कर मैं दिल्ली आया। राजपाल एंड संस में उस समय हिंदी का काम महेंद्र कुलश्रेष्ठजी देखते थे।मेरी पाण्डुलिपि के बारे में बातचीत हो जाने के बाद हम दोनों के बीच ‘पुस्तक-प्रेम’को लेकर चर्चा चली।वे पुस्तक-प्रकाशन सम्बन्धी किसी सेमिनार के सिलसिले में जापान से कुछ दिन पहले ही लौटे थे।वहां के अपने अनुभव को मेरे साथ शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि “जापान में लोगों में पढने के प्रति गहरा लगाव है, जिसका अंदाज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि जैसे अपने यहाँ चाय-काफी या चाट-पकौड़ी की दुकानों के सामने भीड़ लगी रहती है, वैसे ही उस देश में बुक-शॉप्स के सामने पुस्तक प्रेमियों की कतारें लगी रहती हैं। दुकान के सामने टेबल कुर्सियां लगी हुयी होती हैं,आप पुस्तक छांटकर उसे वहीं पर बैठकर पढ़ भी सकते हैं।जब कोई नयी पुस्तक प्रकाशित होती है तो उसे खरीदने के लिए पुस्तक-प्रेमियों की भीड़ भी बढ़ जाती है।"
कुलश्रेष्ठ जी की बात सुनकर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ और मैं सोचने लगा कि हमारे यहाँ ऐसा सब-कुछ क्यों नहीं होता है?सिनेमा देखने या होटल में खाना खाने के लिए हम बड़ा खर्चा करने को तैयार हो जाते हैं मगर सौ-दो सौ रुपए की एक पुस्तक खरीदने के लिए दस बार क्यों सोचते हैं? शायद हमारी सोच या मानसिकता अभी इस मद में खर्च करने के लिए पूरी तरह से तैयार नही हो पाई है।‘साहित्यिक उत्सव’ या ‘बुक फैर्स’आदि आप कराते रहें, मगर जब तक लोगों में पढने की आदत या रुचि में इजाफा नहीं होता, इन ‘उत्सवों’ का कोई मतलब नहीं निकलता। जापान की तरह पुस्तकों को पढने या खरीदने के प्रति हमारी रूचि कैसे बढे,इस पर व्यापक बहस की ज़रुरत है।बालक में पढने-लिखने के प्रति रुचि जगाने में माता-पिता की भी अहम भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।
दार्शनिक एमर्सनका कहना है कि “पुस्तकों से प्रेम/स्नेह ईश्वर के राज्य में पहुँचाने वाला विमान है।” निस्संदेह,मानव-जाति के सांस्कृतिक इतिहास में मनुष्य को अपूर्णता से पूर्णता की ओर ले जाने में तथाअज्ञ से विज्ञ बनाने में जितना काम पुस्तक ने किया उतना अन्य किसी माध्यम द्वारा संभव नहीं हुआ है। कहा जाता है कि श्रेष्ठ महापुरुषों, दिव्य दार्शनिकों और खोज करने वाले तपस्वियों के घोर परिश्रम द्वारा प्राप्त हुए बहुमूल्य रत्न पुस्तकों की तिजोरी में बन्द हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि इतने अनुभव पूर्ण ज्ञान को हम इतनी आसानी से पुस्तकों द्वारा प्राप्त कर लेते हैं।
डा० शिबन कृष्ण रैणा
Ex-Member,Hindi Salahkar Samiti,Ministry of Law & Justice (Govt. of India) SENIOR FELLOW,MINISTRY OF CULTURE (GOVT.OF INDIA) 2/537 Aravali Vihar(Alwar) Rajasthan 301001 Contact Nos; +919414216124, 01442360124 and +918209074186 Email: skraina123@gmail.com,
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