चलो कही दूर हम ,
एक जहा बसायेगे,
जिसमे हम अपनी ,
खोई हुई सुंदर यादो को सजायेगे |
वह भी क्या वक़्त था जब,
रेत का बनाया हमने घरोंदा,
पर ठान लिया था लहेरो ने ,
हम इसे बहायेगे |
वक़्त का पता न चला ,
रेत सा फिसल गया ,
हम सोचते ही रहे गए ,
अपने अपने फलसफ़ा |
उम्र के इस पडाव पर,
जिंदगी कुछ थम सी गयी ,
आहिस्ते आहिस्ते फिर से हम ,
मधुर गीत गुनगुनाएगे |
अब तो इस शहर से ,
मन अपना है भर गया ,
चलो कही फुरसत मे ,
हाले ए दिल सुनाएगे |
जाने कहा गुम हुई श्रुति ,
जहा कि इस भीड़ मे
बाते उन लम्हों की ,
दिल मे फिर से बसायेगे |
डॉ. श्रुति मिश्र
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