धूप ने हवा के कानो में ,जाने क्या कह डाला ,
काले –काले मेघों ने , अधियारा कर डाला !
बादल है रथ पर सवार, चन्दा डोली में बैठा ,
तारों की बारात सजी है , बिजली चमके करें श्र्र्गार!
इक तारे ने न्यौता देकर , सबको बुला रखा है ,
दुल्हन बनकर चाद खड़ा है, बादलों के घुघट में !
कभी हवा के झोकों से, घुघट जो उड़ जाये ,
चाद खड़ा मंडप में सोचे और शरमाये !
रात सुहानी बनी है इनकी , मस्ती खूब है छाई,
बादलों ने मय पीकर तारों की , की अगुवाई !
इतने में पापी सूरज ने , भोर की ली अगड़ाई,
चाद ने भी डर के मारे तारों संग दौड लगाईं !
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