हमे मंजिल की हसरत नही है ,
मिले है प्यार से हम जो किसी से ,
कभी खुद के लिए फुरसत निकाले,
वरना बिखर जायेगे बेरुखी से ,
अधेरा इस कदर हावी है हम पर ,
कि अब डरने लगे है रोशिनी से ,
मिलेश्र वो लोग जो दिल की लगा के ,
हमे बहेला रहे है दिल्लगी से ,
मुझे प्यार से ऐसें न देखो ,
कही मै रो पडू न ख़ुशी से,
हमको भी थोडा सा सहारा दे दो,
कही हम मर न न जाये बेबसी से |
डॉ श्रुति मिश्रा
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY