तुम्हारी परेशानियाँ क्या कुछ कम हैं
जो अपनी भी सुनाने लगूँ
अच्छा होता मिलकर
किसी चुटकुले पर हँस लेते
बचपन की किसी शरारत को यादकर
दुबारा ज़िदगी को जी लेते
हँसते हँसते जो आँसू आने लगें
इसके पहले कि वे फिर पीड़ा में समाने लगें
चुपचाप अपने-अपने घर को चल देते।
डॉ. शुभ्रता मिश्रा
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