हाशियों में भी कोने ढ़ूँढ़ा करते हैं,
कुछ इस तरह खरगोश बनाकर
छोड़ा तुमने।
अब आँखें भी बातें नहीं किया करतीं,
कुछ इस तरह खामोश बनाकर
छोड़ा तुमने।
सहारों पर सिर रखकर रोने से भी डर लगता है,
कुछ इस तरह मेरे वज़ूद को बुत बनाकर
छोड़ा तुमने।
किस तरफ जाऊँ कुछ समझ नहीं आता,
कुछ इस तरह मेरे हालात पे मुझको
छोड़ा तुमने।
डॉ. शुभ्रता मिश्रा
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY