आज रात ठहर जाओ यहीं, सहर1 होने तक
कल जाने कहाँ रहूँ, तुमको खबर होने तक
रहने दे अपने नाम, मेरे नाम के पते से
दिले-बेताब के हर तार को, विस्तर होने तक
उड़ती फ़िरेगी खाक मेरी, कू-ए-यार2 में ,इतना
न तूल दे अपने नाम को, मुख्तसर होने तक
तुम्हारे पास बीमारे-मुहब्बत के लिए दुआ नहीं
मैं दुआ करता हूँ, दुआ का असर होने तक
उस बीमारे मुहब्बत की क्या,जो शीशे पर रखकर
चाटते हैं अपना लब, जख्मे जिगर होने तक
- सुबह 2. यार की गली
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