आबगीना1,तुन्दी-ए-सहबा2 से कभी पिघला नहीं, हमने
दिल उसके पास छोड़ आया, जिससे कभी मिला नहीं
कोई दिन न ऐसा आया, जब उसका आँचल हमारे
हाथ आया, तुम कहते, जमीं-आसमां में फ़ासला नहीं
सूख गया दिल का लहू, जब हमने जाना, रात वह
गैर के संग थी, तू कहता ,यह कोई मसला नहीं
हम सैलाब हैं, आज आये कल गये,कहकर उसे बहुत
समझाया, मगर सितमगर का गरूर तेबर बदला नहीं
यह सच नहीं, कि हम उसकी इस हरकत से खफ़ा हैं
मगर यह भी सच नहीं, कि हमको उससे गिला नहीं
वस्ल पैगाम है जुदाई का,सोच,गिरियां3ने दिल में शोर
मचाया, खूँ4 होकर भी जिगर आँखों से निकला नहीं
1.शीशे का पात्र 2.शराब की गर्मी 3. आँसू 4.कत्ल
Dr. Srimati Tara Singh
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