आदम का बेटा आदम ही कहलायेगा
सपने के देह को नंगी ऊँगली से छूने का लोभ
भला किस मनुज के मन में नहीं जगा होता
स्वान अगोचर होकर भी सदा मानव के अंतर की
मर्म व्यथा को मथते आया है और मथते रहेगा
तुम्हारे भी मन में जगती होगी, ऐसी ही कोई चाह
तुम भी सोच रहे होगे,इस अंध-कूप से निकलकर
जब जाऊँगा धरा पर, तब सपने से करूँगा आँखें चार
आखिर ऐसा क्यों न हो, तुममें हममें फर्क है ही क्या
बस इतना सा कि तुम अभी आकार में हो, हम हैं साकार
कल,आज और कल में कोई फर्क नहीं होगा
सूरज पूरब से उगता आया है,पूरब में ही उगता रहेगा
चाँद को मही पर उतारकर कोई नहीं ला सका, अब तलक
न ही कल्पना की गोद में कोई बैठा है, जो तुम बैठोगे
जिस जहाज से उतारे हो, वही लेने भी आयेगा
आदम का बेटा आदम ही कहलायेगा
मीठी बोली जल के समान शीतल होती है
उसे जितना खौलाओगे, वह उतना ही खौलेगा
क्रोध की आग हमेशा मनुज के सर से उठी है
इसलिए इसे दिमाग से ही बुझाना होगा
अम्बर जल से यह आग न बुझी, न कभी बुझा पाओगे
क्योंकि सभी जानते हैं , विश्व का नाद
टकराता जहाँ , वहीँ ख़त्म भी हो जाता है
प्राणी जीवन मृत्यु की तरह चिरस्थाई नहीं होता
जो आज यहाँ आया है, कल उसे जाना होगा
जो कल आने के लिए तैयार बैठे हैं, उन्हें परसों जाना
होगा, जैसे हम आज दुनिया के तट को छोड़ चले हैं
ये भीगे कमल, गीली कलियाँ कल भी थीं , आज
भी हैं,कल भी रहेंगी, जैसा कि हमें पूर्वजों से
मिला है, वाही तो तुम आकर हमसे पाओगे
संकेतों से आगे वाणी की राह नहीं होती
किरणों को मुखरित कर कुछ नहीं मिलेगा
जिस भेद को प्रकाश की नीरवता नहीं खोल पाई
उसे तुम क्या खोल पाओगे, मेरे कहने का
मतलब, आसमां को जब भी देखो, झुका पाओगे
सपाट किसी ने नहीं देखा, जो तुम देख पाओगे
यहाँ आकाश देता,जिन्हें अपने पन्नों में जगह, वे पूजे
जाते हैं, बाकी अँधेरे की गुमनामी में गम हो जाते हैं
यहाँ कलम बनती है आग, शब्द होते हैं चिनगारी
इसलिए इतिहास के दंडभोगी पर थूकते हैं
रक्तहीन मूरत के आगे सर झुकाते हैं
ऐसा कभी मत सोचना , कि कल जब
तुम यहाँ आओगे, सब कुछ बदल जाएगा
फूल करेंगे तुमसे बातें , पत्थर दिल खोलेंगे
सारी उम्र कट जाती यहाँ, पछतावे और रोने में
सुख नहीं आता कभी बांहों के घेरे में
इसलिए इच्छा हो कि तुम जहाँ हो, वहीँ रहो
क्या रखा है इस बेदर्द जमाने में
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