Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आग के गोले गिरे, अंगारे लहके

 

आग के गोले गिरे, अंगारे लहके


      ग्यारह जुलाई की शाम, मुंबई में आया एक ऐसा तूफ़ान 

      जिसमें आग के गोले गिरे, अंगारे लहके,थर्रा गया इंसान 

      पल भर को ऐसा लगा,कि मानो इस मर्त्यलोक को मनुज 

      रंग से रँगने जलता सूरज,स्वयं उतर आया हो धरती पर 

      जिसे कि यहाँ सिर्फ, एकाकी  खेले, रहे  न कोई कल्पना 

      देखते ही देखते कुसुम दलों से लदी  मुंबई हो गई वीरान 


चटख-चटखकर अस्थिपंजर, मिल गए रज-भू में 

चीत्कारें निकल न सके, डूब गए कंठ ही में 

रक्त-मांस-मज्जा भाप बनाकर उड़ गए शून्य में 

बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष, युवक-युवतियाँ, सभी 

निर्ममता कि वेदी पर चढ़ गए भेंट पल में कुसुम 

शायित मुंबई के जग-जीवन को कर दिया अशांत

आनंद अम्बुनिधि ओझल हो गया , रक्त पंक से 

लथपथ हो गई धरा, पलक झपकते ही

माया की नगरी  , बदलकर हो गई श्मशान 

       घायलों का दुखार्त चीख, हिमालय हिल उठा 

       देश मौन हो गया, झुक गया आसमान 

घूँट भर पानी,ज़रा पानी के रटन की आती थी 

       जब आवाज, पाषाण कलेजा भी फट जाता था 

       घूँट भर पानी भी अमृत है, मगर आज देगा कौन 

       साथ जो पड़े हुए हैं, सभी हैं कटे-फटे, किसी के पैर नहीं हैं 

       किसी के सर बिना धर हैं,किसी के हाथ नहीं हैं, कोई है निस्तेज 


जालिमों ने सोचा, हिल जायेगी भारत की अर्थव्यवस्था की विटप दाल 

प्रत्येक दिशा में जब उमड़ेगा, इस तरह का अग्नि कराल 

भयविभीत भारत की जनता में, भगदड़ मच जायेगी, भागेगी 

अपनी ही छाया के डर से, निज अंतिम चरणों पर लंगडाती

तब हम होंगे अपने मनसूबे में कामयाब, कश्मीर पर होगा राज 

दिल्ली हमारी संतलत होगी, देखेगा सारा विश्व समाज 


इस नृशंस आदिम बर्बरता के प्रतिनिधि की मंसा को 

देखकर भभक उठा क्रोधाग्नि से भारतवासियों का अंतर 

देखना आज नहीं तो कल फटेगा ज्वाला का यह पर्वत 

जब थूकेगा, उबलेगा हर भारतीय जबाब में,दाहक लपटों को 



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