आग के गोले गिरे , अंगारे लहके
ग्यारह जुलाई की शाम , मुम्बई में आया एक ऐसा तूफान
जिसमें आग के गोले गिरे, अंगारे लहके, थर्रा गया इन्सान
पल भर को तो ऐसा लगा , कि मानो इस मर्त्य लोक को मनुज
रक्त से रँगने जलता सूरज स्वयं उतर आया हो धरती पर
जिससे कि यहाँ सिर्फ.एकाकी खेले, रहे न कोई कल्पना
देखते ही देखते कुसुम दलॉं से लदी मुम्बई हो गई वीरान
चट्ख - चटखक्र अस्थिपंजर मिल गए रज- भू में
चीत्कारें निकल न सके, डूब गए कंठ ही में
रक्त - मांस - मज्जा भाप बनकर उड़ गए श्ऊन्य में
बच्चे - बूढे, स्त्री - पुरुष , युवक - युवतियाँ, सभी
निर्ममता की वेदी पर चढ गए भेंट पल में कुसुम
शयित मुम्बई के जग - जीवन को कर दिया अशांत
आनंद अम्बिनिधि ओझल हो गई, रक्त पंक से
लथ - पथ हो गई धरा, पलक झपकते ही
माया की नगरी, बदलकर बन गई श्मशान
घायलों का सुनकर दुखार्त चीख , हिमालय हिल उठा
देश मौन हो गया, झुक गया आसमान
घूँट भर पानी, जरा पानी के रटन की आती थी
जब आवाज , पाषाण कलेजा भी फट जाता था
घूँट भर पानी भी अमृत है, मगर आज देगा कौन
साथ जो पड़े हुए हैं, सभी हैं कटे -फटे, किसी के पैर नहीं हैं
किसी के सिर बिना धर हैं, किसी के हाथ नहीं हैं, कोई है निस्तेज
जालिमों ने सोचा, हिल जायेगी भारत की अर्थ व्यवस्था की विटप डाल
प्रत्येक दिशा में जब उमड़ेगा, इस तरह का अग्नि कराल
भयविभीत भारत की जनता में , भगदड़ मच जायेगी, भागेगी
अपनी ही छाया के डर से, निज अंतिम चरणों पर लँगड़ाती
तब हम होंगे अपने मनसूबे में कामयाब कश्मीर पर होगा हमारा राज
दिल्ली हमारी संतलत होगी, देखेगा सारा विश्व समाज
इस नृशंस आदिम बर्बरता के प्रतिनिधि की मंशा को
देखकर भभक उठता क्रोधाग्नि से भारतवासियों का अंतर
देखना आज नहीं तो कल फटेगा ज्वाला का यह पर्वत
जब थूकेगा, उबलेगा हर भारतीय जवाब में, दाहक लपटों को
भस्मसात कर देगा, विश्व मिटाने की चाहत रखने वालों को
क्योंकि मैं देख रही हूँ,छायाओं में उन शहीदों के कंकालों को
जो चीत्कार भर रहे हैं, कह रहे हैं हर भारतवासी से
देशवाशियो ! आदर्श के विचुम्बी शिखर से अब नीचे उतरो
देखो सम्मुख नाच रहा है मनुज वेष में काल , उसको कुचलो
इन पापियों को देखकर घृणा से मुँह मत फेरो,बल्कि इसे भस्मसात
कर दो, ताकि इन आदमखोरों की कोई दूसरी नस्ल न पैदा हो
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