आज का कश्मीर
---- डॉ० श्रीमती तारा सिंह, नवी मुम्बई
दुनिया का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर
आजव्यपक मनुष्यत्व सेवंचित ,विकास में
सीमित, जाति–धर्म –वर्ग से हैपीड़ित
यहाँ पसरा हुआ है आतंक का गहरा बादल
क्षोभ, शोषण, भ्रम कीकालिमामें
डूब गया है, दुर्गेय दया की भूखी चितवन
नव प्रकाश में तमस युगों का करके आयोजन
कहती अमूर्त जीवन विकास होना,अब है निश्चित
कहा करते थे, जो स्नेह मानव का आभूषण है
स्नेह है जीवन का सार ,आज वे ही कहते हैं
आग से आग बनकर मिलो, पानी से पानी
गरल का उत्तर गरल है, ईंट का जवाब पत्थर
मुड़कर मत देखो कि किसके लहू से लाल
हुई यहाँ की जमीं, किसकी जवानी लूटी गई
कौन अपने माँग का सिंदूर मल -मलकर धो रही
किस माँ का लाल चिता पर जल रहा, कौन है
वह अभागा पिता जो, छाती - कपाल पीट रहा
घाटीकेकोने - कोनेमेंकालजाल - सा
मानव निर्मितअंधियालीरहतीछाईहुई
देखकर धरतीपररुधिरकीच
वायु डोलता मलिन होकर , संध्या रहती उदासीन दुखी
अकथनीय विवशता लोगों की शुष्क आँखों में
तैरती रहती, अधरों पर पीड़ा नीरव रोदन करती
हृदय क्षितिज रहता तिमिरांकित ,भृकुटी रहती चिंतित
प्रकृति धाम कही जाने वाली यह पुण्यभूमि
आज मानव शोणित से हो रही रंजित
तोपों के गर्जन ,बमों की गड़ -गड़ाहट से
तृण -तरु काँप रहे,खग-वृन्द रहते आतंकित
विमानों से पुष्प नहीं ,गिरते हैं बम-गोले
चटक- चटककर ,पिघल- पिघलकर मानव
तन की हाड़-मज्जाएँ वाष्प बन उड़ी जा रहीं
युगों- युगों से जिस भूमि पर ,प्रकृति राशि-राशि
कर अपने रूप – रंग को करती आई निछावर
वहाँमौत मना रही है, विनाश शताब्दी
प्रेत कर रहा है ताण्डव ,खग रोते हैं तरुओं में
छुप -छुपकर, कंदर्प संग लिपटी रोती अनाथ
दूधमुँही,भारत के अंचल में लेटकर कश्मीर रोता
रामचरित मानस में छुपकर , सीता रोती आज
दशरथ के अयोध्या की कितनी दयनीय स्थिति
चिंतन की शैय्या पर लेटकर जन मानस सोचता
युग स्थितियों से प्रेरित होकर , जाति- वर्ण
रूढियों, आचारों को छिन्न करने नव चेतना से
मंडित होकर नई आत्मा वाला मनुज, एक दिन
सूरज बनकर ,घाटी के क्षितिज पर उदय होगा
तब नव दुर्वा के हरे प्ररोहों से ,घाटी फिर से
होगी मनोह,सूरज फिर फैलायेगा उज्ज्वल प्रकाश
सौरभ सुगंध भरी होगी चिनाब, झेलम जल
ज्योत्सना होगी शीतल , फिर सेलौटकर
आयेगा प्रेम , दया, सहृदयता, शील , क्षमा
और तप , संयम , सहिष्णुता रजत - स्वर्ण
में अंकित अप्सरा - सी घाटी लगेगी फिर से सुंदर
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