Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आखिरी मुलाकात

 

आखिरी मुलाकात

चाचारामटहल विलासी, दुर्व्यसनी तथाचरित्रहीनव्यक्तितोथे, मगर सांसारिक व्यवहारमें उनकीतुलना किसीसेनहीं थी  व्यवहार में वे बड़े ही चतुरसूद-ब्याज के मामले में दक्ष चाचा की यही विशेषता सबों को चुप कराये रखते था ;मज़ाल थी कि कोई उनके कहे को अनसुना कर दे  हुक्म करने भर की देरी होती थी,ऋणी कुँजड़े साग-भाजी भेंट में दे जाते थेतो ग्वाला बाजार से आधे भाव में दूध पहुँचाता था  कुछ तो उनके ऋणी भी थेजिन्हें बैल खरीदने आदि के लिए अधिक नहीं, 2000/-, 3000/- रुपये दिये होते थे सूद के लालच में नहींबल्कि अपने अत्याचार को ढ़ँकने के लिए  इस डर से वे कभी जोर देकरतगादा नहीं करते थेकहीं पैसे चुका  दे उनका छोटा भाई शिवटहल जो किसान के साथ एक कवि भी थाउसने कई बार डरते-डरते रामटहल से कहा--- भैयापके आम होकब टपक पड़ोगेपता नहीं ; ऊपरवाले से डरोऔर इस तरह दो का चार करना छोड़ो  जवाब में रामटहल बस इतना बोलकर चुप हो जाता था,’मैं धूर्त हूँसंसार को ठगता हूँतुम धार्मिक होफ़िर संसार तुमको क्यों ठगती है ? क्या इस कर्म से हमारे कुल की कृति बढ़ती है ? अरे ! जो भी सुनते हैंलोग तुम पर हँसते है , तुम्हारे साथ मेरे नाम की भी बदनामी कम नहीं होती है  

रामटहल आँखें मीचे सिर नीचा कर बोला ---- भैया ! नाहक  लेना ; मैं तुम्हारा छोटा भाई हूँतुम्हारे हित में मेरे प्राण निकल जायेतो अपना अहोभाग्य समझूँगा ; इसे कवि का भावावेश भी नहीं समझना  मैं प्रकृति का पुजारी हूँ  जिंदगी हमारे लिए आनंदमय क्रीड़ा हैसरल-स्वच्छंदजहाँ कुत्साईर्ष्या,जलन और धोखे की जगह नहीं  भैया जब कि हमारा एक साँस पर भी अधिकार नहींवहाँ भविष्य की फ़िक्र हमें कायर बना देती है और भूत का भार कमर तोड़ देता है  हम बेकार भार लेकर अपने मनुष्यत्व के रिश्ते को लालच के मलबे में दबाकर उसे कुचल देते हैं  ऐसी शक्ति जो हमें मानव धर्म को पूरा करने में सहयोग के 


बजाय बाधा पहुँचाये वह किस काम का कि शिवटहल के अंत:करण से निकल रहे वेदना भरे स्वर कोरामटहल बड़े ही ध्यान से सुन रहा था  अचानक सुनते-सुनते चिल्ला पड़ा  चिल्लाता कैसे नहींउसके धर्मात्मा पर इससे बड़ा प्रहार और क्या हो सकता था ? उसने खून भरी आँखों से शिवटहल की ओर देखकर कहा --- वाह रे धर्मराज ! तुम्हारी इस भक्ति को मैं क्या नाम दूँलगता है तुमको लेने ईश्वर सीधे स्वर्ग से धर्मराज युधिष्ठिर की तरह विमान भेजेगा ! मगर एक बात याद रखना--- भगवान हमेशा बड़े-बड़े महलों में और मंदिरों में रत्नों के आभूषण पहने रहते हैं जिसे तुम जैसे चबैना चबाने वाले नहीं छू सकते ही पास फ़टक सकतेऐसे में तुम्हें लेने वो खुद आयेंगेतुमने कैसे सोच लिया ?

शिवटहल आश्चर्यचकित हो पूछा---- क्यों भैया ?

रामटहल मुस्कुराते हुए कहा---- क्योंकि वहाँ बैठे ( भगवान के ठीकेदार ) तुमको वहाँ तक पहुँचने ही नहीं देगा  जानते होऐसे वक्त में पैसे ही काम आते हैंवही वहाँ तक पहुँचा सकता है ; जिसके लिए कम से कम मैं तो चिंतारहित हूँ 

शिवटहल व्यथित हो बोला----- भैया ! जिसे आप दुख कहते हैंवही कवि के लिए आनंद है  धन और ऐश्वर्यरूप Submit Comment

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