आखिरी मुलाकात
चाचारामटहल विलासी, दुर्व्यसनी तथाचरित्रहीनव्यक्तितोथे, मगर सांसारिक व्यवहारमें उनकीतुलना किसीसेनहीं थी । व्यवहार में वे बड़े ही चतुर, सूद-ब्याज के मामले में दक्ष चाचा की यही विशेषता सबों को चुप कराये रखते था ;मज़ाल थी कि कोई उनके कहे को अनसुना कर दे । हुक्म करने भर की देरी होती थी,ऋणी कुँजड़े साग-भाजी भेंट में दे जाते थे, तो ग्वाला बाजार से आधे भाव में दूध पहुँचाता था । कुछ तो उनके ऋणी भी थे, जिन्हें बैल खरीदने आदि के लिए अधिक नहीं, 2000/-, 3000/- रुपये दिये होते थे , सूद के लालच में नहीं, बल्कि अपने अत्याचार को ढ़ँकने के लिए । इस डर से वे कभी जोर देकर, तगादा नहीं करते थे, कहीं पैसे चुका न दे। उनका छोटा भाई शिवटहल जो किसान के साथ एक कवि भी था, उसने कई बार डरते-डरते रामटहल से कहा--- भैया, पके आम हो, कब टपक पड़ोगे, पता नहीं ; ऊपरवाले से डरो, और इस तरह दो का चार करना छोड़ो । जवाब में रामटहल बस इतना बोलकर चुप हो जाता था,’मैं धूर्त हूँ, संसार को ठगता हूँ; तुम धार्मिक हो, फ़िर संसार तुमको क्यों ठगती है ? क्या इस कर्म से हमारे कुल की कृति बढ़ती है ? अरे ! जो भी सुनते हैं, लोग तुम पर हँसते है , तुम्हारे साथ मेरे नाम की भी बदनामी कम नहीं होती है ।
रामटहल आँखें मीचे सिर नीचा कर बोला ---- भैया ! नाहक न लेना ; मैं तुम्हारा छोटा भाई हूँ, तुम्हारे हित में मेरे प्राण निकल जाये, तो अपना अहोभाग्य समझूँगा ; इसे कवि का भावावेश भी नहीं समझना । मैं प्रकृति का पुजारी हूँ । जिंदगी हमारे लिए आनंदमय क्रीड़ा है. सरल-स्वच्छंद, जहाँ कुत्सा, ईर्ष्या,जलन और धोखे की जगह नहीं । भैया जब कि हमारा एक साँस पर भी अधिकार नहीं, वहाँ भविष्य की फ़िक्र हमें कायर बना देती है और भूत का भार कमर तोड़ देता है । हम बेकार भार लेकर अपने मनुष्यत्व के रिश्ते को लालच के मलबे में दबाकर उसे कुचल देते हैं । ऐसी शक्ति जो हमें मानव धर्म को पूरा करने में सहयोग के
बजाय बाधा पहुँचाये , वह किस काम का कि शिवटहल के अंत:करण से निकल रहे वेदना भरे स्वर को, रामटहल बड़े ही ध्यान से सुन रहा था । अचानक सुनते-सुनते चिल्ला पड़ा । चिल्लाता कैसे नहीं, उसके धर्मात्मा पर इससे बड़ा प्रहार और क्या हो सकता था ? उसने खून भरी आँखों से शिवटहल की ओर देखकर कहा --- वाह रे धर्मराज ! तुम्हारी इस भक्ति को मैं क्या नाम दूँ; लगता है तुमको लेने ईश्वर सीधे स्वर्ग से धर्मराज युधिष्ठिर की तरह विमान भेजेगा ! मगर एक बात याद रखना--- भगवान हमेशा बड़े-बड़े महलों में और मंदिरों में रत्नों के आभूषण पहने रहते हैं , जिसे तुम जैसे चबैना चबाने वाले नहीं छू सकते, न ही पास फ़टक सकते, ऐसे में तुम्हें लेने वो खुद आयेंगे, तुमने कैसे सोच लिया ?
शिवटहल आश्चर्यचकित हो पूछा---- क्यों भैया ?
रामटहल मुस्कुराते हुए कहा---- क्योंकि वहाँ बैठे ( भगवान के ठीकेदार ) तुमको वहाँ तक पहुँचने ही नहीं देगा । जानते हो, ऐसे वक्त में पैसे ही काम आते हैं, वही वहाँ तक पहुँचा सकता है ; जिसके लिए कम से कम मैं तो चिंतारहित हूँ ।
शिवटहल व्यथित हो बोला----- भैया ! जिसे आप दुख कहते हैं, वही कवि के लिए आनंद है । धन और ऐश्वर्य, रूप Submit Comment