Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आँसू

 

आँसू



वह्निबाढ़उल्काझंझा के भू पर

हर्ष ,शोक,वेदना,पीड़ा को पी-पी कर

आशाऔर  निराशा  में डलमल

यह कैसा जीवनजल है , जिसके

गिर जाने से मन हो जाता उज्ज्वल


जिसे  शूली  पर चढ़ा  मसीहा

पीपी  करभी  नहीं अघाता

जो आँखों की स्मृति के ज्योति-

ताप से गल-गल कर , गंगाजल

बन  गालों  से होकर बह जाता


जो विविध नयनों मेंविविध प्रकार

मृत्यु की रात तक संग सोया रहता

गहन मूकता  में  भीशब्दों  की

परिधि को  पार  करप्राणोंको

सुख दुख का गुंजार  सुनाता


विकल होकर जब यह खिलखिलाता

तब उसकी हँसी की तप्त फ़ुंकारों से

मनुज प्राण मर्माहत  हो  उठता

सोचतानिश्चय ही मृत्युलोक है

मनुज  जीवन  का भावी नंदन वन

जहाँ  होती  केवल करुणा की बरसा


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