आओ ! हम एक दूजे से लगकर बैठें
जिंदगी की ढ़हती दीवार को पकड़कर बैठें
दम लिया था कयामत ने कभी जहाँ
उस वक्ते-सफ़र को संवार कर देखें
रिजवा1 से हमारी लड़ाई नहीं, क्यों न हम
उससे खुल्द2 के घर की बात कर देखें
जीस्त3 की कराह से फ़जा4 बेकरार है, आँख
जागती है क्यों,आदमी की मौत पर,पूछकर देखें
जो वो न चाहे, कौन उठा सकता हमें
चलो उसके दर पर मुश्तमिल5 होकर बैठें
1.स्वर्गाध्यक्ष 2. स्वर्ग 3. जिंदगी 4. हवा
5.मिलकर
डा० श्रीमती तारा सिंह
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY