Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ऐ शम्मा1,ज्यों एक-एक रात

 


ऐ शम्मा1, ज्यों एक-एक रात तुझ पर भारी है
त्यों हमने अपनी उम्र सारी गुजारी है

 

बदगुमानों से कर इश्क का दावा
हमने बज्म2 में हर बार शर्त हारी है

 

मय और माशूक को कब, किसने नकारा है
तुन्द—खूँ3 के मिजाज को इसी ने संवारी है

 

सदमें सहने की और ताकत नहीं हममें
उम्मीद—वस्ल4 में, तबीयत फ़ुरकत5 से हारी है

 

अब किसी सूरत से हमको करार नहीं मिलता
हमारे तपिशे6 दिल की यही लाचारी है

 

बहार गुलिस्तां7 से विदा लेने लगा, लगता
नजदीक आ रही पतझड़ की सवारी है



1.हल्की सुगंध 2.महफ़िल 3.कड़वा स्वभाव वाला
4. मिलन की आस 5.जुदाई 6. व्याकुल 7.बाग

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