Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

अगर जन्म उत्सव है, तो मृत्यु महापर्व

 


अगर जन्म उत्सव है, तो मृत्यु महापर्व



पद्म - सा जगा मनुज साकार अपने चरण को
अमरता के रंग से रँगकर , प्राण को अपनी
पुतली से बाँधकर रखना चाहता चिरकाल
ज्यों वायु में आलोक विचरण करता, शून्यता
में भरी होती आवाज , मगर मकड़ी के जाल में
बंदी मनुज के चतुर्दिक , ज्योतिपिंडों में रहता
ध्वंस भरा, जो अंधकार और प्रकाश से शक्ति
खींचकर पलता - बढता, जो निष्ठुर विधि से
पीड़ित जग के चराचर को, परिवर्तन के चक्रों में
पीसकर कर देता जर्जर, सेवा सौरभ से पूर्ण हृदय
को तिमिर की मदिरा पिलाकर शांत कर देता
दौड़ रहा जो महाकाल धरती के प्रांगण में
तरल अग्नि बनकर वह चिरकाल तक जीने
की अनुमति प्राणी को नहीं देता

मनुज भलीभांति जानता, यह जीवन पानी का बुलबुला
मात्र है जो आज बनता, और कल फूट जाता फिर भी
मनुज चांद को आसमां से धरती पर उतारकर
अपनी गोद में बिठाकर खेलना चहता है सपनों में
देखा जिसे, उसे मन में उतारकर मिट्टी पर रखकर
गले लगाना चाहता है, मगर यह नहीं सोचता काल
की छाती से लिपटकर रहनेवालों को मौत बड़े शौक से
अपने स्तन का दूध पिलाकर मारती है, और नभ से
स्वर्ग - नरक की सुप्त प्रेरणाऍँ , महाकाल बनकर
नियति का निर्मम उपहास , इसी श्मशान में उड़ाती हैं

काया संग छाया, जीवन संग मृत्यु चलता है
सृजनता और नाश लिपटा – सोया रहता है
नाश , विध्वंश , मौन अंधेरा, जीवन का सच है
प्रकृति शक्ति चिह्न होकर भी महाकाल के आगे
निबल है, व्योम में ज्योतिर्मान ही रहे ग्रह, नक्षत्र
विद्युतगण सभी इसकी सत्ता को स्वीकारते हैं
नीरवता की गहराई में स्थापित इस देवी के समक्ष
तीनो लोक नत मस्तक हैं,सृष्टि के कण-कण में छिपी
यही एक सत्य है,जो कुरूप होकर भी नित्य रहस्य है


कहते हैं गंगा का उदगम ज्यों हिमालय है
जन्म का उदगम श्मशान है,अपना घनत्व खोकर
मनुज नव रूपों को धारण करने यहीं आते हैं
यहीं पर जीवन का करुण क्रंदन , चीत्कारें
भाव जगत को छूकर मर्म गीतों में ढलते हैं
फिर भी देखते ही श्मशान को, मानस की
पलकें विस्मित क्यों हो जाती हैं, हाथ - पाँव
फूलने क्यों लगते हैं, तन के सम्पूर्ण रोंगटे
खड़े क्यों हो जाते हैं, जब कि अमरता को
पाने हम जीवन भर सतत आराध्य उपासना
में लगे रहते हैं, वही अमरता तो हमें इस
श्मशान की मिट्टी में सनकर मिलता है
घोर तम मे छिपा प्रकाश्, इसे ही तो हम कहते हैं



Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ