Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ऐ हुस्न ! ख़ुदा के लिये अपने

 

ऐ  हुस्न !   ख़ुदा   के   लिये   अपने

बीमार   को   तड़पाना   छोड़   दे  तू


दुश्मनी   हमसे   रख  अपनी ,  मगर

गैर  को  अपने पास बिठाना छोड़ दे तू


जिक्र   हमारा   हमसे   बेहतर   होगा

महफ़िल  में  हमको  बुलाना छोड दे तू


दास्ताने  इश्क  ही  जब  गलत  ठहरा

फ़साना  प्यार  का  सुनाना  छोड़ दे तू


तुम्हारी  आँखों में शराब-खाने की मस्ती

उमड़ आती है,कहीं आना-जाना छोड़ दे तू


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