प्रकाशनार्थ ग़ज़ल ------ डा० श्रीमती तारा सिंह, नवी मुम्बई
ऐन वक्त पर बात बिगड़ गई
उस बेवफ़ा से आखें लड़ गईं
देखा जो , डूबकर वीराना था वहाँ
पसरा हुआ, जहाँ तक नज़र गई
पहले प्यार , फ़िर इनकार , बाद
अपने हर वादे से मुकर गई
कहें क्या जो पूछे हमसे कोई
कल जो आई , आज किधर गई
हम सिज़दा करते रहे,उसके कदमों में
वह , सुखी रहो , दुआ कर गई
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