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Dr. Srimati Tara Singh
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अक्षय प्रकाश से दीन मनुज

 


अक्षय प्रकाश से दीन मनुज



आतप  अनिल, अन्न – जल  से  शासित

विविध विरोधी तत्वों के,संघर्षों से संचालित

व्याकुल  विश्व,  निज  जीवन  हित, जठर-

भिखारी सा नित, स्वर्णिम  भोर से माँगता 

विश्व  प्राणों मे, नव किरणों का मृदु संचार

जिससे जीवन  के कंपन से,सिहर-सिहरकर

मनुज कुसुम  समान खिला रहे,अपने आप


भाग्यफ़ूलोंसे  लेकर, मदकलमलयपवन

तीनो  कालों में  मिलता रहे  मधु मकरंद

रोम-रोम  में मुद्रित, मधुर गंध,भीनी-भीनी 

सरिता  की  धारा सी  निर्बाध  बहती रहे 

शांति  की स्वच्छ अतलताओं में,सृजन की

शोभा   का  विस्तार  होता   रहे,  जिसे

देख, क्षुब्ध  काल  धीवर  थाम ले पतवार


ज्योति  अंधकार   के   बीच  लड़ाई   खत्म हो

इंद्रियों  का   स्वर्णिम   पट , रूप -गंध- रस के

आभूषण   में   लिपटा,   झंकृत   होता    रहे

जलता  मरुमय  जीवन  में  भी,  अमृतत्व  का

शाश्वत  रस- समुद्र  ,मानवता   की  प्रेरणा  से

लोक  जीवन  की  भू   पर   हिल्लोलित   रहे

जिसमें तृष्णा दिखला न सके,अपना रक्तिम यौवन

मन  मना  न  सके, नग्न  उल्लासों का त्योहार





ऐसे  भी  जब तक, अमर  विश्वास  की  अदृश्य  ज्योति

मनुज मन  के नलिन नयन को,चुम्बन लेकर नहीं जगाती

स्मृति  पूजन में, तप कानन की लता, पुष्प नहीं बरसाती

तब  तक  गौरवकामी   मनुज   नहीं  हो सकता  उद्दार

देव कर से पीड़ित मनुज,घूमता रहेगा लेकर जीवन कंकाल

भारहीन अक्षय प्रकाश से दीन मनुज,भरता रहेगा चित्कार

जब  जायेगा तिमिर से  हार, तब करेगा अपना ही आहार

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