Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आँधी की तरह आना और चला जाना तेरा

 

आँधी की तरह आना और चला जाना तेरा
इससे तो अच्छा था नहीं आना तेरा

 

बेवफ़ा , तू ढूँढ़ ले अपना आशियाना1 कोई
दूसरा, अब न रहा यह घर ठिकाना तेरा

 

कभी कान देकर तेरे अफ़साने2 को सुननेवाले
अब धरते हैं कान,कहाँ गया वह जमाना तेरा

 

कर याद उन नशीली आँखों को आता है
रोना ,जिसके दम पर था आशियाना मेरा

 

देखा जब गैर के आने पर अँगराई तेरी
बेहिजाबी3 मैं समझ गया बहाना तेरा

 



1. घर 2. कहानी 3.बेशर्मी

 

 

 

 

डा० श्रीमती तारा सिंह

 

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