Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आँख खुली तो सपने टूट गये

 

आँख खुली तो सपने टूट गये
मुड़कर देखा तो अपने छूट गये

 

क्या बताऊँ, हाले - वद अपना , कैसे
अपनों की मेहरबानी से करम फ़ूट गये

 

अजियत1 तेरे गम की, मुझे जीने नहीं
देता,बोल-बोलकर वे अपनी छाती कूट गये

 

फ़लक2 के अहाते से निकला भी न था
कि सर पर आसमां टूट गये

 

जिंदगी की गिरह अजल खोलती,उसके
पहले मय, मीना महफ़िल,साकी लूट गये

 



1. कष्ट 2. आकाश

 

 

 

डा० श्रीमती तारा सिंह

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ