Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अपना प्रेमास्पद चित्र चित्रित कर गया

 

अपना प्रेमास्पद चित्र चित्रित कर गया


भाग्य गगन के  धुँधले प्राची पट पर 

इतना प्रभापूर्ण प्रकाश किसने आकर फैला दिया

शून्य - शून्य रहती थी जहाँ  खेलती थी छाया

कौन है जो प्रणय किरणों-सा अपने कोमल बंधन से 

मेरे तन -मन को बाँधकर मेरे हृदय -प्राण में

अपना प्रेमास्पद चित्र चित्रित कर गया


कौन  है जो अपने प्रेम कलरव से आवृत कर 

मेरे मनोभाव के  सोये विहग को जगा दिया

जहाँ रहती  थीं हाहाकार भरीपीड़ा  की तरंगें

वहाँ हँसने लगी किरणों की तरंगों सी मेरी प्रसन्नता

कामना के उत्तुंग शिखर पर आकार में बड़े-बड़े

होकर खिलने लगीमहकने लगी फूल-अभिलाषा


हृदय का लाल  रस ,रक्त कंदर्प संग मिलकर

मलिन हो चुका था कब काकिसने आकर आज

इस कंदर्प में अचानक उन्मादक फूल खिला दिया

घटा सी उमड़ रही मेरी आह को

व्योम से उतारकर धरातल पर ला खड़ा किया


उजड़े वन,सूखे समुद्र,धूसर अम्बर से मुझको प्यार था

विष-लता  को निचोड़कर पीने का अभ्यास था

किसने अपने हृदयहिमालय को पिघलाकर 

मेरे प्राण  कदमों  के नीचेशीतल गंगा बहा दिया


देखकर सुषमा  को उमड़ती,  द्रुमों से लता को लिपटती

मेरी रक्त शिराएँ हो उठती थीं कँपित ,नयनों से ढ़लता था नीर 

समय वक्ष को चीरकर किरणें आती थीं पहले भीफिर भी

मेरा जीवन वीरान था,अँधेरा थाकिसने मेरे हृदय के कोने-

कोने को  छूकर  सोना बना दियाजो किरणों में उज्ज्वल

गीत गूँथे होते हैं मेरे लिएसौरभ समीर बहता है मेरे लिए

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