गुप्ताजी को अतिथि सेवा बहुत पसंद है । बचपन में माँ-बाप से उन्होंने यही तो सीखा है । घर आये मेहमान भगवान होते हैं,पहले उनका स्वागत,अर्थात उनके-रहने-खाने की व्यवस्था करो ,फ़िर अपनी । मेहमानों में अगर बचपन के दोस्त आ जायें,तो फ़िर क्या कहने ;एक दिन पहले से ,खाने में क्या-क्या बनना है,तैयारी शुरू हो जाती है । यही कारण है कि उनके घर में कुछ तैयारियाँ पहले से ही रहती है । एक बार उनके बचपन का मित्र, आने वाला था । उसके स्वागत में कोई कमी न रह जाये,सो पहले से ही अपनी पत्नी और नौकर से कहना शुरू कर दिये,’लक्ष्मी ! कल मेरा मित्र ! आने वाला है,देखना,उसके स्वागत में कोई कमी न रह जाये । घर में खाने-पीने का सब सामान है तो,कुछ कम हो तो,बोलो । मैं बाजार से ला दूँगा ।
पत्नी ,गुप्ताजी को विश्वास दिलाते हुए बोली – नहीं जी, बाजार से कुछ नहीं लाना,सब कुछ है । तुम्हारे मित्र के स्वागत में कोई कमी न होगी । आप मुझ पर छोड़ दीजिए ।
गुप्ताजी संतोष की साँस लेते हुए --- चलो,सब ठीक है । लेकिन रामू ,इधर से कुछ बातूनी हो गया है । कहीं वह कुछ ऐसा-वैसा न बोल जाये । इसलिए रामू को अलग से बुलाकर गुप्ताजी ने चेताया ।
गुप्ताजी ने कहा – रामू ! कल मेरा मित्र आ रहा है, उसका स्वागत ठीक से करना । किसी के भी साथ आदमी को अच्छा व्यवहार करना चाहिये ।
रामू ने विश्वास दिलाते हुए कहा – ठीक है साहब, आप जो कहोगे,वही होगा ।
दोस्त विनय आया । शाम को गुप्ताजी से फ़िर मिलने का वादा करते हुए कहा --- जिंदगी में ऐसा अचार नहीं खाया , जैसा कि मुझे यहाँ खाने को मोला । गुप्ताजी् ठिठककर रह गये । फ़िर संभलते हुए बोले --- तुमको पसंद आई , यही सब से बड़ी बात है । भीतर से पत्नी की आवाज आई,’ अजी, उन्हें रूकने बोलो । मैं अभी आई ।
पत्नी हाथ में अचार का डब्बा लाते हुए बोली – भाई साहब ! आपको मेरे घर का अचार पसंद आया, तो मैं सोची,कुछ पत्नी के लिए भी भेज दूँ । कृपया इसे लेते जाइये ।
जब गुप्ताजी के मित्र चले गये,तब गुप्ताजी एकबारगी चिल्ला उठे – कहाँ है रामू,उसे बुलाओ ।
रामू – क्या है, साहब !
गुप्ताजी --- तुमने मेरे खाने के अचार में हाथ क्यों लगाया ? मैंने कहा थान , मेरे अचार में कभी हाथ नहीं लगाना । इसलिए मैंने मेहमानों के लिए अलग से अचार बनवाकर रखा है । फ़िर वह न देकर, मेरा अचार क्यों दिया ?
रामू ने कहा -- -- साहब ! मैंने कहाँ दिया, वो तो आपने कल शाम में मुझसे कहा, घर आये मेहमान के साथ अच्छा व्यवहार करना ; सो मैंने आप वाला अचार व्यवहार किया ।
गुप्ताजी सर पीतते हुए बोले --- मेरे गुरू ! मुझे माफ़ अर दो गलती मेरी थी जो मैं ऐसा बोला ।
रामू ---- ठीक है साहब ! कोई बात नहीं ।
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