बहरे-जहां1 में जर्र-जर्र होती जा रही, हमारी
जीवन-कश्ती को कब मिलेगा किनारा,नहीं मालूम
इश्क फ़ंदे से तंग हैं,उसके जुल्फ़ के फ़ंदे से होकर
गिरफ़्तार रहना बेहतर है या छुटकारा नहीं मालूम
नफ़से - मुरदा2 फ़ना होकर भी दुनिया में
सीमाब3 बन आता कैसे दुबारा नहीं मालूम
हमको इश्के-हबीब4ने मारा,जब जलेगी लाश हमारी
तब ,पहले धुआँ उठेगा या अंगारा नहीं मालूम
तुम्हारे वादे-बुतां को हम अच्छी तरह समझते हैं
ख़ुदा जाने कैसे चलता,कारोबार तुम्हारा नहीं मालूम
1. संसार रूपी समुद्र 2. प्राण ही साँस 3.पारा
4.प्रेमिका का प्रेम
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