Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बहरे-जहां में जर्र-जर्र होती जा रही

 

बहरे-जहां1  में  जर्र-जर्र  होती  जा  रही, हमारी

जीवन-कश्ती को कब मिलेगा किनारा,नहीं मालूम


इश्क फ़ंदे से तंग हैं,उसके जुल्फ़ के फ़ंदे से होकर

गिरफ़्तार रहना बेहतर है या छुटकारा नहीं मालूम


नफ़से - मुरदा2   फ़ना होकर  भी  दुनिया  में

सीमाब3  बन  आता  कैसे  दुबारा  नहीं  मालूम


हमको इश्के-हबीब4ने मारा,जब जलेगी लाश हमारी

तब ,पहले  धुआँ  उठेगा  या  अंगारा नहीं मालूम


तुम्हारे  वादे-बुतांको हम अच्छी तरह समझते हैं

ख़ुदा जाने कैसे चलता,कारोबार तुम्हारा नहीं मालूम



  1. संसार रूपी समुद्र 2. प्राण ही साँस 3.पारा 

4.प्रेमिका का प्रेम

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