Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बहरे – जहां में, कश्ति – ए - उम्र , ठहर

 

बहरे – जहां1 में, कश्ति – ए - उम्र2 , ठहर

जाये   जहाँ ,  वो   ही  तो  किनारा  है


नाकामी - ए- हयात3   का   क्या  करना

गिला, दो  दिन  गुजारना  था, गुजारा  है


हर दिन होता  नहीं, किसी का एक समान

आज   दिन  तुम्हारा , कल   हमारा  है


एक बार किस्मत ने मुँह फ़ेरा,फ़िर न कभी

खुला बाबे- इबादत4 ,बहुत  बार  पुकारा है


वक्ते आखिर आ ही गया,मौत का मजा,बुत 

करे खुदाई का दावा,हम कहें खुदा हमारा है




1.संसार रूपी समुद्र 2.ढ़लती उम्र 3.जिंदगी

 की  नाकामी 4. स्वीकृति  का  द्वार



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