Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बहुत रहे हम दूर –दूर, और हमें दूर नहीं रहना है

 

बहुत  रहे हम दूर –दूर, और हमें दूर नहीं  रहना है

जीना-मरना  संग-संग है,और हमें दूर नहीं  रहना है



सब  की  सुनी, सब  की  कही मानी, अब  जग को

अपनी  बात मनवानी है, और हमें दूर नहीं  रहना है


पाप  क्या और  पुण्य क्या, इससे  हमें क्या लेना है

हम दो जिस्म एक जान हैं,और हमें दूर नहीं रहना है


लगे  रहते हैं कान  सितारों के,जिसकी आहट पर,हमें

उस मुहब्बत  को पाना है,और हमें दूर नहीं  रहना है


महकी  हुई ठंढी रातों में, अपने  साजे तरब पर गीत

मुहब्बत  का गाना है, और हमें  दूर  नहीं  रहना है






Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ