Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बैठे न कभी पास हम ,दूर-दूर ही रहे

 

बैठे   कभी पास  हम ,दूर-दूर ही रहे

दिल के करीब रहकर भी,हम दूर ही रहे


  खुद के  हो सके जमाने  के ही

निभाते  दुनिया का  हम दस्तूर ही रहे


फ़ासले  दरम्यां  जमीं आसमां  हुये

मगर अपनी  जगह हम मगरूर ही रहे


कभी  मंदिर ,कभी मस्जिद ,कहाँ-कहाँ

 फ़िरे ,फ़िर भी घर से हम दूर ही रहे


  जिंदगी  मिली  मौत ही आयी

बन  कर खाकउड़ते हम जरूर ही रहे

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ