Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बेरहम वक्त

 

राजू आई० सी० यु० के बाहर मूक-बधिर बनी बैठी अपनी मम्मी सुधा के चरणों पर घायल पक्षी की तरह तड़पता हुआ आ गिरा, और सिसक-सिसककर रोता हुआ बताया --- मम्मी ! पापा नहीं बचेंगे । अपने बेटे के मुँह से अपने पति के बारे में ऐसी बातें सुनकर सुधा सन्न रह गई । लेकिन एक पर्वत की तरह, जलमग्न होने की बात जानकर भी अपने जमे हुए विश्वास के पहाड़ को जरा भी नहीं हिलने दी । वह अपने आँचल से राजू की आँख के आँसू पोछती हुई बोली ---- बेटे, इस तरह की अपश्कुन भरी बातें नहीं करते ।
मम्मी की बातें सुनकर , राजू की हिचकी गले में आकर अटक गई । उसने घिघियाते हुए कहा ---- ऐसी बातें मैं नहीं, डॉक्टर कह रहा है ,मम्मी ।
सुधा भयातुर नेत्रों से अपने बेटे की ओर ताकती हुई बोली----ईश्वर इतना निर्दयी नहीं हो सकता । बेटा, हमने किसका क्या बिगाड़ा है, जो हमें इतनी बड़ी सजा देगा । वह क्यों अपने ही रचे खिलौने को अग्नि कुंड में ढ़्केलेगा ?
राजू विचारवान था; वह मम्मी की धर्म-पवित्रता से पराजित हो, कुछ देर के लिए डॉक्टर की कही बातों को ठुकरा दिया । फ़िर वनदेवता की भाँति चिंघाड़ उठा, बोला --- मम्मी ! अगर मेरे पापा के साथ ऐसा- वैसा कुछ हुआ, तो आज से ऐसे आतंकवादी ईश्वर को अपने हृदय से निकाल बाहर कर दूँगा । सदा के लिए उसकी दया और दंड ,दोनों से मुक्त हो जाऊँगा ।
सुधा , बेटे से भर्राई आवाज में कही --- हाँ बेटा ! इतना कठोर दंड ,सचमुच विश्वास की भक्ति को मिटा देता है, लेकिन तुम विश्वास रखो; तुम्हारे पापा को कुछ नहीं होगा । हमने उन्हें डॉ०क्टर से चेक- अप करने लाया है ; चेक –अप के पूरा होते ही हमलोग उनके साथ घर लौट जायेंगे ।
फ़िर अपने अंतर्मन के उत्सुक नेत्रों से पति की तस्वीर मन में उतारती हुई राजू से कही --- तुम्हारे पापा एक धर्मपरायण व्यक्ति हैं; वे तो अभाव में संतोष का आनंद उठानेवालों में से हैं । उनका अनिष्ट ऊपरवाला क्यों कर करेगा ?
मम्मी की विद्रोह भरी ललकार राजू को, माँ की हृदय-वेदना सी जान पड़ी, जो आँसुओं से कहीं अधिक मर्मान्तिक थी । ज्यों चिनगारी के स्पर्श से छाले पड़ जाते हैं, दहकती आग में पाँव पड़ जाय तो झुलस जाते हैं, त्यों माँ की आवाज में हृदय की दहकती आग थी । माँ का करुण-क्रंदन ,राजू के हृदय को हिला दे रहा था । वह चुपचाप अपनी माँ के मुख की ओर ताकता रहा ; दुख का अल्पांश मेघ,जो पक्षी की तरह उड़ता हुआ उसके हृदय-आकाश पर आ खड़ा हो गया था, धीरे-धीरे सम्पूर्ण आकाश पर भारी पड़ने लगा था । अतीत की शीतल छाया में हरी होती उसकी कामनाएँ वर्तमान की ज्वाला में जलकर राख होने लगी थीं । वह अपने बदकिस्मत भाग्य से डरते-डरते , प्राणों को हाथों में लिए , अपनी माँ के समीप गया । वहाँ एक क्षण भी खड़ा नहीं रह सका; जैसे लोहा खिंचकर चुम्बक से लिपट जाता है , वह अपनी माँ से लिपट गया । सुधा अपने बेटे की आँखों से बह रहे आँसू को आँचल से पोछती हुई बोली --- बेटा ! लगता है, रात हो गई, तुमने पापा से कहा नहीं, जाकर कहो ----’ पापा अब घर चलिये । मम्मी को नौ बजे तक सोने की आदत है ; फ़िर खुद-बखुद बुदबुदाती हुई बोली --- वो भी अजीब हैं, जहाँ बैठ जाते हैं, वहीं के हो जाते हैं । उनका कोई घर है, घर में परिवार है, जो उनके आने का इंतजार कर रहा होगा, यह भी भूल जाते हैं ।
तभी एक आवाज आई---’ 502, आई० सी० यु ० में, आपको डॉक्टर बुला रहे हैं । राजू दौड़ता हुआ जब वहाँ पहुँचा, उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई । पिता मकड़े की जाल जैसी मशीनों के बीच बेहोश पड़े हुए थे , शरीर में कोई हरकत नहीं थी ! वह डॉक्टर के सामने एक भिक्षु की तरह खड़ा रहा ।
कुछ देर बाद डॉक्टर ने बताया --- इनके बचने की उम्मीद नहीं के बराबर है, इसलिए घर के सदस्यों को यहाँ बुला लो । मैंने इनको बचाने के लिए अपनी सारी बुद्धि लगा दी, लेकिन ऊपरवाले के सामने किसका चलता है ? इतना बोलकर डॉक्टर जाने लगा; राजू डॉक्टर के पैर पर गिरकर दोनों हाथों से उन्हें जकड़ लिया, कहा--- डॉक्टर पापा के के सिवा मेरा, मेरे सिवा पापा का; दोनों में से किसी का कोई तीसरा नहीं है , इसलिए ऐसा मत कहिये । मेरी माँ , पापा को ले जाने का इंतजार कर रही है, मैं उससे क्या कहूँगा , कि तुम्हारा पति गृहवासी न बन स्वर्गवासी होने जा रहे हैं । डॉक्टर उस देवी से मैं ऐसा नहीं कह सकता, जिसे पति-प्रेम के आगे अशर्फ़ियों के ढ़ेर भी बिच्छू के डंक जैसे लगते हैं । इसलिए आप मेरा प्राण ले लो, पर मेरे पापा को बचा लो । ऐसे भी उनके बिना मैं जी नहीं पाऊँगा । राजू का एक-एक प्रश्न ,डॉक्टर के हृदय को कँपा दे रहा था, जिस तरह मृग-शावक व्याघ्र के सामने व्याकुल होकर इधर-उधर देखता है, उसी तरह डॉक्टर अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से दीवार की ओर ताकने लगा ; सोचने लगा--- क्या उत्तर दूँ ? उसने क्षीण स्वर में सिर झुकाकर ,कलेज़ा मजबूत कर कहा--- राजू , मैं तुम्हारी हृदय-वेदना को समझता हूँ। मैं भी ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि उस तपस्विनी की त्याग-कौमुदी कभी नहीं मुरझे ; तुम भी उनसे यही प्रार्थना करो ।
राजू काँपते स्वर में कहा--- जानते हैं डॉक्टर , आज 40 साल हो गये, इस दौरान एक दिन के लिए भी मम्मी, पापा से अलग नहीं रही । पापा की देख-रेख में उसकी देह धुल गई, स्वास्थ्य धुल गया; अब तो बुढ़ापा आ गया, लेकिन आज भी पापा से उसका लगाव तनिक भी कम नहीं हुआ । उसने अपने अभाव के दिनों में अपने भाग्य को कोसना तो दूर , अपने माथे पर भी बल नहीं आने दिया । उसका कहना है, मेरे पति भले ही कोई सेठ न रहे हों, लेकिन त्याग की वे मूर्ति हैं । उन्होंने मेरी हर छोटी-बड़ी खुशियों में मेरा साथ दिया है । एक आदमी को जीने के लिए और क्या चाहिये ?’
डॉक्टर दूसरे रोगी को देखने लगा । राजू वहीं पर सिर झुकाये ,कुछ देर चिंता और शोक की मूर्ति बनकर खड़ा रहा , फ़िर द्रुतगति से दौड़ता हुआ अपनी माँ के पास आया, देखा---सत्यता और दीनता की मूर्ति उसकी माँ की आँखों के आँसू पथरा चुके हैं । वह टकटकी लगाये दीवारों को ऐसे निहार रही थी, मानो वह दीवार , दीवार नहीं, बल्कि साहस, आत्मबल और उदारता के प्रतिरूप उसके पति खड़े हैं ।
राजू कुछ देर तक माँ को बदहवास निहारता रहा, फ़िर एकाएक माँ के गले से लिपट गया, बोला ---माँ तुम तो माँ काली की भक्त हो न , तो अपने माँ काली से कहो न ,कि पापा को अच्छा कर दें, वो अगर चाहेगी, तो सब ठीक हो जायगा ।
सूखे काठ की तरह बैठी- पड़ी , सुधा की जान में न जाने कहाँ से चेतना आ लौटी । उसने अपनी आँखें बंद कर मन ही मन माँ काली को याद कर बोली------ क्या मेरा इतना सुख भी नहीं देख सकती ? इस अनंत ज्वाला की मालकिन, तुम्हीं करुणा की देवी हो ; तुमने इन्हीं निष्ठुर दुखों के लिए मुझे अब तक जिलाकर रखा, कैसी कठोर तुम्हारी दया है माँ ?
सहसा सुधा के शीर्ण पर कांति आ गई, उसे लगा---- उसके पति, उससे मिलना चाह रहे हैं ? उनकी आँखें खुली हुई हैं, वे उसे ढ़ूँढ़ रहे हैं ।
उसने अपने बेटे को अपने चरणों पर से उठाकर कहा--- बेटा । मेरा जीवन जब भी किसी स्नेह छाया की खोज में आगे बढ़ा है, तो माँ काली मुझे वहाँ मिली है । मैं चिंता के अतिवाद में पड़कर निराश व्यक्ति सा बिरागी बन गई थी, यह मेरी भूल है । फ़िर मन ही मन बुदबुदाई--- मनुष्य का हृदय किस सामग्री से बना है । वह जन्म-जन्मांतर की बात स्मरण कर सकता है और एक क्षण में सब भूल भी सकता है ।
राजू रोता हुआ पूछा---- मम्मी ! तुम कुछ बोलने वाली थी ?
सुधा अपनी आँख के आँसू पोछती हुई बोली---- राजू, तुम्हारे पिता को कुछ नहीं होगा, वे जल्द ठीक हो जायेंगे । इस बात को बताते हुए सुधा के भाव में जितना विश्वास था, उतना हर्ष नहीं था ।
राजू व्यथित कंठ से माँ से कहा--- मैं पापा को देखकर आता हूँ, तुम यहीं बैठी रहना ।
सुधा चुपचाप बैठी, आई० सी० यु० की तरफ़ जाते हुए अपने बेटे को ताकती रही । लगभग पाँच मिनट बाद राजू, दौड़ता हुआ अपनी माँ के पास आया; आकर गले से लिपट गया और हर्षित हो बताया--- मम्मी, मेघ का वह अल्पांश जो आज तीन दिन से हम दोनों के हॄदय आकाश पर पक्षी की भांति उड़ता हुआ आकर अपना डेरा डाल दिया था और धीरे-धीरे हमारे सम्पूर्ण हृदय-आकाश पर छाकर अंधेरा कर दिया था । माँ काली की असीम दया से अब वह छटने लगा है, शीघ्र ही चमकता सूरज निकलने वाला है । चिंता की ज्वाला में झुलसी हमारी कामनाएँ, आशाऎँ,माँ काली की अगाध दया की शीतल छाया में फ़िर से हरी-भरी होने लगी है । मम्मी ! पापा को होश आ गया है, उन्होंने मुझसे बातें तो नहीं की, लेकिन उनकी आँखें कह रही थीं,”मैं ठीक हूँ, तुम चिंता मत करो, तुम्हारी मम्मी कहाँ है” ?
सुधा, जो कि पति के अचानक बीमार पड़ने की खबर से विक्षिप्त हो गई थी; रोने की बात पर हँसती और हँसने की बात पर रोती, उसकी सजल आँखें सगर्व हो गईं । उसका आहत हृदय माँ काली के चरणों पर ,मन ही मन नतमस्तक हो गिर पड़ा । वह खुद को बड़ी मुश्किल से संभाली और बेटे राजू की ओर देखी, जिसके मुख पर वेदनामय दृढ़ता, जो निराशा से बहुत कुछ मिलती-जुलती थी, अंकित हो रही थी, मानो, पिता के अलावा संसार में उसका अपना और कोई नहीं हो, जब कि घर में उसकी पत्नी और छ: साल का एक बेटा भी था, जो तीन दिन से पापा,पापा बोलकर रो रहा था । बेटे को देखकर सुधा की आँखें फ़िर भर आईं, लाख यत्न करने पर भी आँसू नहीं रोक सकी । राजू समझ गया, वह माँ का हाथ पकड़कर बोला---- मम्मी ! पापा बहुत जल्दी ठीक हो जायेंगे । अब इन आँखों के आँसू पोछ लो । सुधा जानती थी, दिल कहता था, “ सुधा तुम्हारी भक्ति कौमुदी, आज नहीं तो कल जरूर खिलेगी । मुरझा नहीं सकती, चाहे भाग्य की अकृपा ही क्यों न बनी रहे और वही हुआ भी । जहाँ सुधा को प्रतिकूल दिशा में उदय होने वाली उषा की लाली भी दिखाई नहीं देती थी, वहाँ सूरज बनकर उसका पति उसके सामने था । अचानक पति को होश में आया देख, वह किन शब्दों में माँ काली का स्वागत करे, और किन प्रसंगों को बताये, खड़ी-खड़ी इन्हीं कल्पनाओं का वह आनंद उठाती रही ।
माँ-बेटा, दोनों अपने-अपने विचारों में खोये हुए थे, तभी आई०सी०य़ु० से बुलाहट आई—502 , डॉक्टर बुला रहे हैं । राजू भागता हुआ गया और डॉक्टर के पैर पर गिर गया । डॉक्टर ने राजू को उठाकर गले से लगा लिये और पूछे---- राजू, तुम्हारे और कोई भाई-बहन हैं ?
राजू रोता हुआ जवाब दिया--- हाँ, एक बड़ा भाई है,लेकिन यहाँ नहीं, अमेरिका में रहता है
डॉक्टर, संतावना के स्वर में कहा--- आज से मैं तुहारा बड़ा भाई हूँ । कोई जरूरत लगे, तो फ़ोन करना ।
भंसते को तिनके का सहारा मिला ; नि:सहाय राजू ने अपने शरीर में एक बल का अनुभव किया और पूछा---- डॉक्टर ,पापा !
डॉक्टर ने कहा---तुम्हारे पापा, आज और कल, दो दिन यहीं रहेंगे । परसों सुबह आठ बजे तुम इन्हें घर ले जा सकते हो । अब वो ठीक हैं, लेकिन सच मानो राजू, यह एक चमत्कार है, जिस हालत में तुमने अपने पापा को यहाँ लाया था, उनके जिंदा होने की एक प्रतिशत भी उम्मीद नहीं थी ।
राजू रोता हुआ कहा ---- हाँ डॉक्टर , सब माँ काली का चमत्कार है ।

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